Thursday, February 25, 2016

विजयनगर साम्राज्य / Vijaynagar Empire

विजयनगर साम्राज्य / Vijaynagar Empire



विजयनगर साम्राज्य (1336-1646) मध्यकालीन दक्षिण भारत का एक साम्राज्य था। इसके राजाओं ने ३१० वर्ष राज किया।

इसका वास्तविक नाम कर्णाटक साम्राज्य था। इसकी स्थापना हरिहर प्रथम और बुक्का राय प्रथम नामक दो भाइयों ने की थी। ऐसा माना जाता है कि यह भाई पासी थे। पुर्तगाली इसे बिसनागा राज्य के नाम से जानते थे।

इस राज्य की १५६५ में भारी पराजय हुई और राजधानी विजयनगर को जला दिया गया। उसके पश्चात क्षीण रूप में यह और ८० वर्ष चला। राजधानी विजयनगर के अवशेष आधुनिक कर्नाटक राज्य में हम्पी शहर के निकट पाये गये हैं और यह एक विश्व विरासत स्थल है। पुरातात्त्विक खोज से इस साम्राज्य की शक्ति तथा धन-सम्पदा का पता चलता है



परिचय
दक्षिण भारत के नरेश इस्लाम के प्रवाह के सम्मुख झुक न सके। मुसलमान उस भूभाग में अधिक काल तक अपनी विजयपताका फहराने में असमर्थ रहे। इस्लाम के प्रभुत्व को मिटाकर विजयनगर के सम्राटों ने पुन: हिंदू धर्म को जाग्रत किया। यही कारण है कि दक्षिणपथ के इतिहास में विजयनगर राज्य को विशेष स्थान दिया गया है।

दक्षिण भारत की कृष्णा नदी की सहायक तुंगभद्रा को इस बात का गर्व है कि विजयनगर उसकी गोद में पला। उसी के किनारे प्रधान नगरी हंपी स्थित रही। विजयनगर के पूर्वगामी होयसल नरेशों का प्रधान स्थान यहीं था। दक्षिण का पठार दुर्गम है इसलिए उत्तर के महान सम्राट् भी दक्षिण में विजय करने का संकल्प अधिकतर पूरा न कर सके।

द्वारसमुद्र के शासक वीर वल्लाल तृतीय ने दिल्ली सुल्तान द्वारा नियुक्त कंपिलि के शासक मलिक मुहम्म्द के विरुद्ध लड़ाई छेड़ दी। ऐसी परिस्थिति में दिल्ली के सुल्तान ने मलिक मुहम्मद की सहायता के लिए दो (हिंदू) कर्मचारियों को नियुक्त किया जिनके नाम हरिहर तथा बुक्क थे। इन्हीं दोनों भाइयों ने स्वतंत्र विजयनगर राज्य की स्थापना की। सन् १३३६ ई. में हरिहर ने वैदिक रीति से राज्याभिषेक संपन्न किया और तुंगभद्रा नदी के किनारे विजयनगर नामक नगर का निर्माण किया।

विजयनगर राज्य में चार विभिन्न वंशों ने शासन किया। प्रत्येक वंश में प्रतापी एवं शक्तिशाली नरेशों की कमी न थी। युद्धप्रिय होने के अतिरिक्त, सभी हिंदू संस्कृति के रक्षक थे। स्वयं कवि तथा विद्वानों के आश्रयदाता थे। हरिहर तथा बुक्क संगम नामक व्यक्ति के पुत्र थे अतएव उन्होंने संगम सम्राट् के नाम से शासन किया। विजयनगर राज्य के संस्थापक हरिहर प्रथम ने थोड़े समय के पश्चात् अपने वरिष्ठ तथा योग्य बंधु को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया। संगम वंश के तीसरे प्रतापी नरेश हरिहर द्वितीय ने विजयनगर राज्य को दक्षिण का एक विस्तृत, शक्तिशाली तथा सुदृढ़ साम्राज्य बना दिया। हरिहर द्वितीय के समय में सायण तथा माधव ने वेद तथा धर्मशास्त्र पर निबंधरचना की। उनके वंशजों में द्वितीय देवराय का नाम उल्लेखनीय है जिसने अपने राज्याभिषेक के पश्चात् संगम राज्य को उन्नति का चरम सीमा पर पहुँचा दिया। मुसलमानी रियासतों से युद्ध करते हुए, देबराय प्रजापालन में संलग्न रहा। राज्य की सुरक्षा के निमित्त तुर्की घुड़सवार नियुक्त कर सेना की वृद्धि की। उसके समय में अनेक नवीन मंदिर तथा भवन बने।

दूसरा राजवंश सालुव नाम से प्रसिद्ध था। इस वंश के संस्थापक सालुब नरसिंह ने १४८५ से १४९० ई. तक शासन किया। उसने शक्ति क्षीण हो जाने पर अपने मंत्री नरस नायक को विजयनगर का संरक्षक बनाया। वही तुलुव वंश का प्रथम शासक माना गया है। उसने १४९० से १५०३ ई. तक शासन किया और दक्षिण में कावेरी के सुदूर भाग पर भी विजयदुंदुभी बजाई। तुलुब वंशज कृष्णदेव राय का नाम गर्व से लिया जाता है। उसने १५०९ से १५३९ ई. तक शासन किया। वह महान प्रतापी, शक्तिशाली, शांतिस्थापक, सर्वप्रिय, सहिष्णु और व्यवहारकुशल शासक था। उसने नायक लोगों को दबाया, उड़ीसा पर आक्रमण किया और दक्षिण के भूभाग पर अपना अधिकार स्थापित किया। सोलहवीं सदी में यूरोप से पुर्तगाली भी पश्चिमी किनारे पर आकर डेरा डाल चुके थे। उन्होंने कृष्णदेव राय से व्यापारिक संधि की जिससे विजयनगर राज्य की श्रीवृद्धि हुई। तुलुव वंश का अंतिम राजा सदाशिव परंपरा को कायम न रख सका। सिंहासन पर रहते हुए भी उसका सारा कार्य रामराय द्वारा संपादित होता था। सदाशिव के बाद रामराय ही विजयनगर राज्य का स्वामी हुआ और इसे चौथे वंश अरवीदु का प्रथम सम्राट् मानते हैं। रामराय का जीवन कठिनाइयों से भरा पड़ा था। शताब्दियों से दक्षिण भारत के हिंदू नरेश इस्लाम का विरोध करते रहे, अतएव बहमनी सुल्तानों से शत्रुता बढ़ती ही गई। मुसलमानी सेना के पास अच्छी तोपें तथा हथियार थे, इसलिए विजयनगर राज्य के सैनिक इस्लामी बढ़ाव के सामने झुक गए। विजयनगर शासकों द्वारा नियुक्त मुसलमान सेनापतियों ने राजा को घेरवा दिया अतएव सन् १५६५ ई. में तलिकोट के युद्ध में रामराय मारा गया। मुसलमानी सेना ने विजयनगर को नष्ट कर दिया जिससे दक्षिण भारत में भारतीय संस्कृति की क्षति हो गई। अरवीदु के निर्बल शासकों में भी वेकंटपतिदेव का नाम धिशेषतया उल्लेखनीय है। उसने नायकों को दबाने का प्रयास किया था। बहमनी तथा मुगल सम्राट् में पारस्परिक युद्ध होने के कारण वह मुसलमानी आक्रमण से मुक्त हो गया था। इसके शासनकाल की मुख्य घटनाओं में पुर्तगालियों से हुई व्यापारिक संधि थी। शासक की सहिष्णुता के कारण विदेशियों का स्वागत किया गया और ईसाई पादरी कुछ सीमा तक धर्म का प्रचार भी करने लगे। वेंकट के उत्तराधिकारी निर्बल थे। शासक के रूप में वे विफल रहे और नायकों का प्रभुत्व बढ़ जाने से विजयनगर राज्य का अस्तित्व मिट गया।

हिंदू संस्कृति के इतिहास में विजयनगर राज्य का महत्वपूर्ण स्थान रहा। विजयनगर की सेना में मुसलमान सैनिक तथा सेनापति कार्य करते रहे, परंतु इससे विजयनगर के मूल उद्देश्य में र्को परिवर्तन नहीं हुआ। विजयनगर राज्य में सायण द्वारा वैदिक साहित्य की टीका तथा विशाल मंदिरों का निर्माण दो ऐसे ऐतिहासिक स्मारक हैं जो आज भी उसका नाम अमर बनाए हैं




स्थापत्य कला
इस साम्राज्य के विरासत के तौर पर हमें संपूर्ण दक्षिण भारत में स्मारक मिलते हैं जिनमें सबसे प्रसिद्ध हम्पी के हैं। दक्षिण भारत में प्रचलित मंदिर निर्माण की अनेक शैलियाँ इस साम्राज्य ने संकलित कीं और विजयनगरीय स्थापत्य कला प्रदान की। दक्षिण भारत के विभिन्न सम्प्रदाय तथा भाषाओं के घुलने-मिलने के कारण इस नई प्रकार की मंदिर निर्माण की वास्तुकला को प्रेरणा मिली। स्थानीय कणाश्म पत्थर का प्रयोग करके पहले दक्कन तथा उसके पश्चात् द्रविड़ स्थापत्य शैली में मंदिरों का निर्माण हुआ। धर्मनिर्पेक्ष शाही स्मारकों में उत्तरी दक्कन सल्तनत की स्थापत्य कला की झलक देखने को मिलती है।

उत्पत्ति
इस साम्राज्य की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न दंतकथाएँ भी प्रचलित हैं। इनमें से सबसे अधिक विश्वसनीय यही है कि संगम के पुत्र हरिहर तथा बुक्का ने हम्पी हस्तिनावती राज्य की नींव डाली। और विजयनगर को राजधानी बनाकर अपने राज्य का नाम अपने गुरु के नाम पर विजयनगर रखा[1]।

दक्षिण भारत में मुसलमानों का प्रवेश अलाउद्दीन खिल्जी के समय हुआ था। लेकिन अलाउद्दीन उन राज्यों का हराकर उनसे वार्षिक कर लेने तक ही सीमित रहा। मुहम्मद बिन तुगलक ने दक्षिण में साम्राज्य विस्तार के उद्येश्य से कम्पिली पर आक्रमण कर दिया और कम्पिली के दो राज्य मंत्रियों हरिहर तथा बुक्का को बंदी बनाकर दिल्ली ले आया। इन दोनों भाइयों द्वारा इस्लाम धर्म स्वीकार करने के बाद इन्हें दक्षिण विजय के लिए भेजा गया। माना जाता है कि अपने इस उद्येश्य में असफलता के कारण वे दक्षिण में ही रह गए और विद्यारण्य नामक सन्त के प्रभाव में आकर हिन्दू धर्म को पुनः अपना लिया। इस तरह मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में ही भारत के दक्षिण पश्चिम तट पर विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की गई।

साम्राज्य विस्तार
विजयनगर की स्थापना के साथ ही हरिहर तथा बुक्का के सामने कई कठिनाईयां थीं। वारंगल का शासक कापाया नायक तथा उसका मित्र प्रोलय वेम और वीर बल्लाल तृतीय उसके विरोधी थे। देवगिरि का सूबेदार कुतलुग खाँ भी विजयनगर के स्वतंत्र अस्तित्व को नष्ट करना चाहता था। हरिहर ने सर्वप्रथम बादामी, उदयगिरि तथा गुटी के दुर्गों को सुदृढ़ किया। उसने कृषि की उन्नति पर भी ध्यान दिया जिससे साम्राज्य में समृद्धि आयी। होयसल साम्राट वीर बल्लाल मदुरै के विजय अभियान में लगा हुआ था। इस अवसर का लाभ उठाकर हरिहर ने होयसल साम्राज्य के पूर्वी बाग पर अधिकार कर लिया। बाद में वीर बल्लाल तृतीय मदुरा के सुल्तान द्वारा 1342 में मार डाला गया। बल्लाल के पुत्र तथा उत्तराधिकारी अयोग्य थे। इस मौके को भुनाते हुए हरिहर ने होयसल साम्राज्य पर अधिकार कर लिया। आगे चलकर हरिहर ने कदम्ब के शासक तथा मदुरा के सुल्तान को पराजित करके अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली।

हरिहर के बाद बुक्का सम्राट बना हंलाँकि उसने ऐसी कोई उपाधि धारण नहीं की। उसने तमिलनाडु का राज्य विजयनगर साम्राज्य में मिला लिया। कृष्णा नदी को विजयनगर तथा बहमनी की सीमा मान ली गई। बुक्का के बाद उसका पुत्र हरिहर द्वितीय सत्तासीन हुआ। हरिहर द्वितीय एक महान योद्धा था। उसने अपने भाई के सहयोग से कनारा, मैसूर, त्रिचनापल्ली, काञ्ची, चिंगलपुट आदि प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।

शासकों की सूची[संपादित करें]
संगम वंश[संपादित करें]
हरिहर राय १ 1336-1356
बुक्क राय १ 1356-1377
हरिहर राय २ 1377-1404
विरुपक्ष राय 1404-1405
बुक्क राय २ 1405-1406
देव राय १ 1406-1422
रामचन्द्र राय 1422
वीर विजय बुक्क राय 1422-1424
देव राय २ 1424-1446
मल्लिकार्जुन राय 1446-1465
विरुपक्ष राय २ 1465-1485
प्रौढ राय 1485
सलुव वंश[संपादित करें]
सलुव नरसिंह देव राय 1485-1491
थिम्म भूपाल 1491
नरसिंह राय २ 1491-1505
तुलुव वंश[संपादित करें]
तुलुव नरस नायक 1491-1503
वीरनरसिंह राय 1503-1509
कृष्ण देव राय 1509-1529
अच्युत देव राय 1529-1542
सदाशिव राय 1542-1570
अरविदु वंश[संपादित करें]
अलिय राम राय 1542-1565
तिरुमल देव राय 1565-1572
श्रीरंग १ 1572-1586
वेंकट २ 1586-1614
श्रीरंग २ 1614-1614
रामदेव अरविदु 1617-1632
वेंकट ३ 1632-1642
श्रीरंग ३ 1642-1646




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पाण्ड्य राजवंश

पाण्ड्य राजवंश (तमिल: பாண்டியர்) प्राचीन भारत का एक राजवंश था। इसने भारत में 560 से 1300 ई तक राज किया।




परिचय
तमिल प्रदेश का इतिहास प्रारंभ से ही मुख्य रूप से तीन राजवंशों का इतिहास रहा है- चोल, चेर और, पांड्य। इनमें से पांड्य राजवंश का अधिकार इस प्रदेश के दक्षिणी पूर्वी छोर पर था। उत्तर में पांड्य राज्य पुथुक्कट्टै राज्य तक फैला था; वल्लरु नदी इसकी उत्तरी सीमा थी। साधारणतया दक्षिणी त्रावणकोर और वर्तमान तिन्नेवली, मदुरा तथा रम्नाद जिले ही इसमें सम्मिलित थे। पाड्यों की राजधानी का नाम 'मदुरा' उत्तर भारत स्थित मथुरा के अनुकरण पर था जो पांडवों के साथ इनके सबंध की परंपरा की ओर संकेत करता है। दक्षिण में आज भी महाभारत के युद्ध के अवसर पर पांड्यों की स्थिति का निर्देश करती हुई अनुश्रुतियाँ है। 'महावंस' से ज्ञात होता है कि पांड्य राज्य बुद्ध के समय में भी बना रहा; इस ग्रंथ में बुद्ध के परिनिर्वाण के कुछ दिनों बाद लंका के राजकुमार विजय और एक पांड्य राजकुमारी के विवाह का उल्लेख है।

पाण्ड्य शब्द की उत्पत्ति
कात्यायन ने पांड्य शब्द की उत्पत्ति 'पांडु' से बतलाई है जिससे पांडवों के साथ इनके सबंध की अनुश्रुति का समर्थन होता है। मेगस्थनीज़ के अनुसार पांड्य देश में स्त्रियों का शासन था; पांड्य नाम हेरेक्लीज (कृष्ण के यूनानी पर्याय, जिस मेगस्थनीज़ ने शौरसेनों का उपास्य कहा है) की पुत्री पंडाइया के नाम पर पड़ा जिस उसके पिता ने ५०० हाथी, ४००० घुड़सवार और १,३०,००० पैदल सेना के साथ सुदूर दक्षिण का राज्य दिया जहाँ के ३६५ गाँवों के लोग क्रम से उसे पति दिन उपहार देते थे। अर्थशास्त्र में पांड्यकवाट के मोती और मथुरा के सूती वस्त्रों का उल्लेख है। अशोक के दूसरे और १३वें शिलाभिलेख में पांड्यों का नाम दक्षिण के पड़ोसी राज्य के रूप में आता है; अशोक ने यहाँ मनुष्यों और पशुओं की चिकित्सा का प्रबंध कराया, आवश्यक औषधियों के उत्पादन की व्यवस्था कराई और 'धम्म' की शिक्षा के लिए अपने दूत भेजे। कलिंग नरेश खारबेल के पांड्य राज से मुक्ता, मणि और रत्न प्राप्त किए थे जो संभवत: विजयोपरांत उपहार के रूप में थे। यूनानी लेका स्ट्रैवो से पांड्य नरेश के द्वारा २० ई.पू. में रोमन सम्राट् आगस्टस के पास दूत भेजने की सूचना मिलती है। पेरिप्लस नाम के ग्रंथ और टालेमी ने पिंडनोई और उनकी नाजधानी मदौरा का उल्लेख किया है।


इतिहास
आरम्भिक इतिहास (ईसापूर्व ३री शताब्दी - ३री शताब्दी ई.)[संपादित करें]
तमिल भाषा के संगम साहित्य से सर्वप्रथम कुछ प्राचीन पांड्य राजाओं के नाम उनके उल्लेखनीय कृत्यों के सहित ज्ञात होते हैं। इनमें पहला नाम नेडियोन का है किंतु उसका व्यक्तित्व काल्पनिक मालूम होता है। दूसरा शासक पल्शालै मुदुकुडुभि अधिक सजीव है। कहा जाता है, उसने अनेक यज्ञ किए थे और विजित प्रदेशो के साथ निर्दयता का व्यवहार किया था। तीसरा शासक नेड्ड जेलियन् था जिसका विरुद (प्रशस्ति) था 'एक आर्य' (उत्तर भारत का) सेना पर विजय प्राप्त करनेवाला (आरियप्पडैक दंड)। एक छोटी सी कविता उसकी रचना बतलाई जाती है। प्राचीन पांड्य नरेशें में सबसे अधिक प्रसिद्ध शासक एक दूसरा नेड्डंजेलियन् था जिसका राज्यकाल २१० ई. के लगभग था। अल्प आयु में ही सिंहासन पर बैठते ही उसने अपने समकालीन शासकों के सम्मिलित आक्रमण को विफल किया, उनका चोल देश में खदेड़कर तलैयालंगानम् के युद्ध में पराजित किया और चेर नरेश को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया।

प्रथम पाण्ड्य साम्राज्य (छठी शताब्दी - दसवीं शतब्दी)
छठी शताब्दी में पांड्य राज्य पर कलभ्रों का अधिकार हो गया था। कड्डंगोन् (५९०-६२०) और उसके पुत्र मारवर्मन् अरनिशूलामणि (६२०-६४५) ने कलभ्रों के आधिपत्य का अंत कर पांड्य राज्य का पुनरुद्धार किया। शेंदन अथवा जंयतवर्मन् (६४५-६७०) ने चेर राज्य की विजय की थी। किंतु उसकी प्रसिद्धि अपने न्याय और शौर्य के कारण है। अरिकेसरि परांकुश मारवर्मन (६७०-७१०) के सय से प्रथम पांड्य साम्राज्य के गौरव का श्रीगणेश होता है। पांड्य साम्राज्य का विस्तार उनकी परंपरागत सीमाओं के बाहर भी हुआ। इस साम्राज्यवादी नीति के कारण उसका उत्तर में पल्लवों और पश्चिम में केरलों के साथ संघर्ष हुआ। संभवत: यही अनुश्रुतियों में वर्णित कूण पांड्य नाम का राजा था जिसने संत संबदर से प्रभावित होकर शैव सिद्धांत की दीक्षा ली और जैनियों को त्रस्त किया। कोच्चडैयन रणधीर (७१०-७३०) की प्रभुता चोल और चेर राज्य मानते थे। उसने कोंगुदेश और मंगलपुरम् (मंगलोर) की भी विजय की थ। मारवर्मन राजसिंह प्रथम (७३०-७६५) ने पल्लव नरेश नदिवर्मन् मल्लवमल्ल को कई युद्धों में पराजित किया। उसने कावेरी नदी पारकर मलकोंगम् की विजय की। पश्चिमी चालुक्य नरेश कीर्तिवर्मन् द्वितीय और उसके गंग सामंत श्रीपुरुष को उसने वेण्वै के प्रसिद्ध युद्ध में पराजित किया था। अपने गौरव के अनुकूल उसने अनेक महादान संपन्न किए। जटिल परांतक नेडुंजडैयन् ने जा वरगुरम् महाराज प्रथम (७६५-८१५) के नाम से प्रसिद्ध है, पांड्य साम्राज्य के विस्तार में सबसे अधिक योग दिया। उसने अपने राज्यकाल के प्ररंभिक वर्षों में ही पल्लवों को कावेरी के दक्षिणी तट पर पेंणागवम् नाम के स्थान पर पराजित किया। उसने पश्चिमी कोंगु देश के शासक के समंत अदियैमान तथा पल्लव और केरल नरेशों की संगठित शक्ति को पराजित कर कोंगु देश को अपने अधिकार में कर लिया। विलियम् के सुदृढ़ दुर्ग को नष्ट कर उसने वेनाड (दक्षिणी त्रावणकोर) की विजय की। बीच के प्रदेश के आर्य सामंत को भी पराजित किया था। पांड्य सत्ता त्रिचनापली के अतिरिक्त तंजोर, सालेम, कोयंबत्तूर और दक्षिणी त्रावणकोर में भी फैल गई थी। उसने महादेव और विष्णु दोनों के ही मंदिरों का निर्माण कराया। संभवत: यही शैव संत माणिक्क वाचगर से संबधित वरगुण था। श्रीमार श्रीवल्लभ (८१५-८६२) ने प्रसार के क्रम को बनाए रखा। उसने लंका पर आक्रमण करे उसके उत्तरी भाग और उसकी राजधानी को लूटा।

पल्लव नरेश नंदिवम्र् तृतीय ने श्रीमार की विकासवादी नीति के विरुद्ध गंग, चोल और राष्ट्रकूटों के साथ शक्तिशाली संघ बनाया। पांड्यों को पराजित कर पल्लव सेना उनके राज्य के अंदर घुस गई थी किंतु श्रीमार ने अपने विरोधियों को कुंबकोनम् के समीप पराजित किया। अंत में वह पल्लव नरेश नृपतुंग के हाथों अरिशिल के युद्ध में पूरी तरह पराजित हुआ। इसी समय लंका के शसक सेन द्वितीय ने पांड्यों की राजधानी को लूटा। श्रीमार की मृत्यु युद्ध के घावों के कारण हुई। सिंहली सेनापति ने श्रीमार के पुत्र वरगुण वर्मन् द्वितीय (८६२-८८०) को सिंहासन पर बैठाया। वरगुण वर्मन् ने पल्लवों की बढ़ती शक्ति को रोकने का प्रयत्न किया किंतु फिर पल्लव, चोल और गंग वंशों की संमिलित सेनाओं ने पांड्यों को श्रीयुरंबियम के युद्ध में पराजित किया। परांतक वीर नारायण (८८०-९००) के समय में चोल नरेश ने कोंगु देश को पांड्यों से छीन लिया। मारवर्मन राजसिंह द्वितीय (९००-९२०) को यद्यपि लंका की सहायता प्राप्त हुई फिर भी उसे चोल नरेश परांतक के हाथों पराजित होना पड़ा। पहले उसने लंका और फिर केरल में शरण ली।

चोलों के आधीन (१०वीं से १३वीं शताब्दी)
इस प्रकार पांड्य राज्य चोलों की अधीनता में आ गया और प्राय: तीन शताब्दियों तक उसकी कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं रही। किंतु पांड्य राजवंश ने कभी भी इस अपमानजनक स्थिति को स्वीकार नहीं किया और निरंतर विद्रोह के द्वारा चोलों को चैन नहीं लेने दिया। वीर पांड्य द्वितीय ने राष्ट्रकुट नरेश कृष्ण द्वितीय के आक्रमण के कारण चोलों की विपन्न स्थिति का लाभ उठाकर अपने को स्वतंत्र कर लिया। वीन पांड्य का राज्य १५-२० वर्षों तक रहा जिसमें उसने नाप तौल के पैमानों को सुधारने का भी प्रयत्न किया। वह चोलवंशीय आदित्य द्वितीय के द्वारा मारा गया। किंतु राजराज प्रथम ने पांड्य नरेश का फिर पराजित किया। पांड्यों की विद्रोहात्मक प्रवृत्ति के कारण राजेंद्र प्रथम ने भी मदुरा पर आक्रमण किया और सुरक्षा की दृष्टि से इस प्रदेश का शासन चोल पांड्य उपाधियुक्त चोल राजकुमारों को ही देने का चलन निकाला। लेकिन प्राचीन पांड्य राजवंश के व्यक्ति फिर भी बच रहे थे। प्राय: ये लंका के साथ मिलकर चोलों का विरोध करते थे। इसी से राजेंद्र प्रथम और कुलोत्तुंग प्रथम के बीच के सभी चोल नरेश पांण्ड्य राजाओं पर अपनी विजय का उल्लेख करते हैं। कुलोत्तुंग प्रथम ने अपने राज्यकाल में पांड्यों के विद्रोह को कुचलकर राज्य का शासन पांड्य राजवंश के ही व्यक्तियों को सौंप दिया। कुलोत्तुंग के बाद पांड्य राज्य पर चोलों का शासन सिद्ध करने के लिए कोई भी अभिलेख प्राप्त नहीं होता। पांड्य चोलों के अधीन थे लेकिन धीरे धीरे उनके प्रभाव से मुक्त होते गए।

११६६ ई. में पराक्रम पांड्य और कुलशेखर के बीच उत्तराधिकार के लिए कलह हुआ। लंका के नरेश पराक्रमबाहु ने पराक्रम की सहायता के लिए सेना भेजी। कुलशेखर की सहायता चोलों ने की। अंत में लंका की सेना पराजित हुई। पराक्रमबाहु ने इस संघर्ष के फलस्वरूप लंका में अपनी स्थिति को विपन्न पाकर कुलशेखर के सिंहासनाधिकार को स्वीकार कर चोलों के विरुद्ध उसके साथ एक गुप्त संधि की। चोलों ने पांड्य सिंहासन के लिए वीर पांड्य का समर्थन किया और कुलशेखर को भगा दिया। इस बार पराक्रमबाहु ने वीर पांड्य को चोलों के विरुद्ध अपने पक्ष में कर लिया। किंतु चोल फिर विजयी हुए और उन्होंने विक्रम पांड्य को मदुरा के सिंहासन पर बैठाया। वीर पांड्य ने भी चोलों की अधीनता स्वीकार कर ली।

पुनरुत्थान तथा चरमोत्कर्ष (१३वीं - १४वीं शताब्दी)[संपादित करें]
चोलों की क्षीण होती हुई शक्ति का लाभ उठाकर पांड्यों ने अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। पांड्यों के इस द्वितीय साम्राज्य का प्रारंभ जटावर्मन् कुलशेखर (११९०-१२१३) से होता है। किंतु जटावर्मन् कुलशेखर की स्वतंत्र होने की लालसा को चोल नरेश कुलोत्तुंग तृतीय ने दबा दिया था। जटावर्मन् के अनुज मारवर्मन् सुंदर पांड्य (१२१६-१२३८) ने सच्चे रूप में द्वितीय पांड्य साम्राज्य का आरंभ किया। उसने चोल राज्य पर आक्रमण करके चिंदबरम् तक की विजय की थी। किंतु होयसलों के हस्तक्षेप करने के कारण उसने चोलों को अधीनता स्वीकार करने पर ही छोड़ दिया। दूसरी बार उसने चोल नरेश राजराज तृतीय को पराजित किया किंतु इस बार भी होयसलों के हस्तक्षेप करने पर वह चोल साम्राज्य पर स्थायी अधिकार न कर सका। फिर भी उसे राज्य की सीमाएँ विस्तृत थीं। मारवर्मन् सुंदर पांड्य द्वितीय (१२४८-१२५१) चोल नरेश राजेंद्र तृतीय के हाथों पराजित हुआ था किंतु होयसलों ने पांड्यों का पक्ष लेकर चोलों को मनमानी नहीं करने दिया। जटावर्मन् सुंदर पांड्य प्रथम (१२५१-६८) इस वंश का निश्चय ही सर्वश्रेष्ठ सम्राट् था। उसने अपने समकालीन चेर, होयसल, चोल, तेलुगु, काकतीय और बाण सभी का अपने पराक्रम से अभिभूत किया था। उसके साम्राज्य का विस्तार लंका से नेल्लोर तक हो गया था। अपनी विजयों से प्राप्त वैभव का उपयोग उसने चिदंबरम् और श्रीरंगम् के मंदिरों को आकर्षक और संपन्न बनाने में किया। उसकी वैभवप्रदर्शन की प्रवृत्ति उसके अनेक अभिलेखों और तुलाभारों में परिलक्षित होती है।

जटावर्मन् ने पांड्य राजकुमारों को उपराजा के रूप में शासन से संबंधित किया था। इस पद्धति का उल्लेख विदेशी लेखकों ने भी किया है। जटावर्मन् सुंदर पांड्य प्रथम के साथ जटावर्मन् वीर पांड्य प्रमुख उपराजा था। मारवर्मन् कुलशेखर (१२६८-१३१०) ने जटावर्मन् सुंदर पांड्य के अंतिम वर्षों में ही उपराजा के रूप में शासन आंरभ कर दिया था। स्वयं उसके साथ अनेक उपराजे संबद्ध थे जिनमें प्रमुख हैं जटावर्मन् सुंदर पांड्य द्वितीय और तृतीय, जटावर्मन् वीर पांड्य द्वितीय और मारवर्मन् विक्रम पांड्य। मारवर्मन् कुलशेखर इस वंश का अंतिम महान सम्राट् था। उसने चोल, होयसल और लंका के नरेशों तथा अन्य दूसरे शासकों को फिर से पराजित किया था। मार्को पोलो और मुस्लिम इतिहासकार वस्साफ ने उसकी शक्ति और वैभव का वर्णन किया है।

मलिक काफूर का आक्रमण[संपादित करें]
मारवर्मन की वृद्धावस्था में उसके दो पुत्रों जटावर्मन् सुंदर पांड्य और जटावर्मन् वीर पांड्य में सिंहासन के लिए संघर्ष हुआ जिसमें कुलशेखर की मृत्यु हुई। पांड्यों की क्षीण शक्ति का लाभ उठाकर अलाउद्दीन खल्जी के सेनापति मलिक काफूर ने मदुरा पर आक्रमण कर उसे लूटा। किंतु पांड्य राजाओं की स्थिति फिर भी बनी रही। चेर नरेश रविवर्मन् कुलशेखर और काकतीयों ने पांड्य राज्य के कुछ भागों पर अधिकार कर लिया। अनेक सांमतों ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। पांड्य राज्य पर दूसरा मुस्लिम आक्रमण १३२९ ई. में खुमरू खाँ के अधीन हुआ और फलस्वरूप मदुरा में दिल्ली के सुल्तान की ओर से प्रांतपाल की नियुक्ति हुई। फिर भी पांड्यों का अधिकार मदुरा, रामनाड, तंजोर, दक्षिणी आकटि और पुदुक्कोट्टइ पर बना रहा। किंतु कंपन के द्वारा मदुरा पर विजयनगर साम्राज्य का अधिकार स्थापित होने के बाद पांड्यों का प्रभुत्व केवल तिन्नेवेल्ली तक ही सीमित रह गया। अब पांड्यों का इतिहास क्रमिक पतन की कथा मात्र रह जाता है। १६वीं शताब्दी के आरंभ में इस राजवंश का पूर्ण रूप से लोप हो जाता है।



पाण्ड्य वंश के शासक

कटुङ्कोन् --- सन् 575-600

अवऩि चूळामणि --- सन् 600-625

चॆऴियन् चेन्दन् --- सन् 625-640

अरिकेसरी --- सन् 640-670

रणधीर --- सन् 670-710

पराङ्कुश --- सन् 710-765

परान्तक --- सन् 765-790

इरण्टाम् इराचचिम्मन् --- सन् 790-792

वरगुणन् --- सन् 792-835

श्रीवल्लभ --- सन् 835-862

वरगुण वर्मन् --- सन् 862-880

परान्तक पांड्य --- सन् 880-900

मारवर्मन राजसिंह द्वितीय --- सन् 900–920

मून्राम् इराचचिम्मन् --- सन् 900-945

वीर पांड्य --- सन् 946-966

अमर भुजंग --- सन् 930-945

श्रीवल्लभ पांड्य --- सन् 945-955

वीरकेसरी --- सन् 1065-1070

जटावर्मन् श्रीवल्लभ --- सन् 1145-1150

जटावर्मन् विक्रम --- सन् 1149-1158

पराक्रम पांड्य --- सन 1150-1160

जटावर्मन् परान्तक पांड्य --- सन 1150-1162

मारवर्मन् श्रीवल्लभ --- सन् 1132-1162

जटावर्मन् कुलशेखर पांड्य --- सन् 1162-1175

जटावर्मन् वीर पांड्य --- सन् 1175-1180

विक्रम पांड्य --- सन् 1180-1190

मुतलाम् जटावर्मन् कुलशेखर --- सन् 1190-1218

पराक्रम पांड्य द्वितीय (सिंहल का राजा) --- सन् 1212–1215

मारवर्मन् सुंदर पांड्य --- सन् 1216-1238

इरण्टाम् जटावर्मन् कुलशेखर --- सन् 1238-1250

मारवर्मन् सुंदर पांड्य द्वितीय --- सन् 1239-1251

मुतलाम् जटावर्मन् सुंदर पांड्य --- सन् 1251-1271

इरण्टाम् जटावर्मन् वीर पांड्य --- सन् 1251-1281

मारवर्मन् कुलशेखर पांड्य प्रथम --- सन् 1268-1311

मारवर्मन् विक्रम पांड्य --- सन् 1268-1281

इरण्टाम् जटावर्मन् सुंदरपांड्य --- सन् 1276-1293

जटावर्मन् पराक्रम पांड्य --- सन् 1422-1463

मून्राम् जटावर्मन् कुलशेखर पांड्य --- सन् 1429-1473

अऴकन् पॆरुमाळ् पराक्रम पांड्य --- सन् 1473-1506

कुलशेखर देव --- सन् 1479-1499

जटावर्मन् श्रीवल्लभ पांड्य --- सन् 1534-1543

पराक्रम कुलशेखर --- सन् 1543-1552

नॆल्वेलि मारन् --- सन् 1552-1564

जटावर्मन् अतिवीरराम पांड्य --- सन् 1564-1604

वरतुङ्ग पांड्य --- सन् 1588-1612

वरगुणराम पांड्य --- सन् 1613-1618


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राष्ट्रकूट साम्राज्य / Rashtrakoot Vansha

राष्ट्रकूट साम्राज्य / Rashtrakoot Vansha

राष्ट्रकूट साम्राज्य
दन्तिदुर्ग (735-756) ने चालुक्य साम्राज्य को पराजित कर राष्ट्रकूट साम्राज्य की नींव डाली।

दन्तिदुर्ग (735 - 756)
कृष्ण १ (756 - 774)
गोविन्द २ (774 - 780)
ध्रुव धारवर्ष (780 - 793)
गोविन्द ३ (793 - 814)
अमोघवर्ष १ (814 - 878)
कृष्ण २ (878 - 914)
इन्द्र ३ (914 -929)
अमोघवर्ष २ (929 - 930)
गोविन्द ४ (930 – 936)
अमोघवर्ष ३ (936 – 939)
कृष्ण ३ (939 – 967)
खोट्टिग अमोघवर्ष(967 – 972)
कर्क २ (972 – 973)
इन्द्र ४ (973 – 982)
तैलप २ (प्रतीच्य चालुक्य) (973-1200) ने इस साम्राज्य को पराजित कर इस वंश को अन्त कर दिया।


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चालुक्य राजवंश / Chalukya Vansha

चालुक्य राजवंश / Chalukya Vansha


चालुक्य प्राचीन भारत का एक प्रसिद्ध राजवंश था। इनकी राजधानी बादामि (वातापि) थी। अपने महत्तम विस्तार के समय (सातवीं सदी) यह वर्तमान समय के संपूर्ण कर्नाटक, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिणी मध्य प्रदेश, तटीय दक्षिणी गुजरात तथा पश्चिमी आंध्र प्रदेश में फैला हुआ था।



परिचय :->
चालुक्य राजवंश कई शाखाओं में विभक्त था। यह मान्यता है कि वे (चालुक्य) सोलंकी वंश के ही समरूप थे, क्योंकि वे भी इस रूढ़ि में विश्वास करते थे कि परिवार का अधिष्ठाता ब्रह्मा की हथेली से उत्पन्न हुआ था। यह भी किबदंती है कि चालुक्यों का मूल वासस्थान अयोध्या था, जहाँ से चलकर उस परिवार का राजकुमार विजयादित्य दक्षिण पहुँचा और वहाँ अपना राज्य स्थापित करने के प्रयत्न में पल्लवों से युद्ध करता हुआ मारा गया। उसके पुत्र विष्णुवर्धन् ने कदंबो और गंगों को परास्त किया और वहाँ अपने राज्य की स्थापना की। वंश की राजधानी बीजापुर जिले में बसाई थी। विष्णुवर्धन् का एक उत्तराधिकारी कीर्तिवर्मन् प्रथम था, जो छठी शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ था। उसने कदंबों, गंगां और मौर्यों को पराजित करके अपने पूर्वजों द्वारा अर्जित प्रदेश में कुछ और भाग मिला लिए। पुलकेशिन् द्वितीय, कुब्ज विष्णुवर्धन और जयसिंह उसके तीन पुत्र थे और छठी शताब्दी के अंत में उसका उत्तराधिकार उसके छोटे भाई मंगलेश को प्राप्त हुआ। मंगलेश ने 602 ई. के पूर्व मलवा के कलचुरीय बुद्धराज को परास्त किया और दक्षिण में कलचुरि राज्य के विस्तार को रोका। उसने अपने पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने का प्रयत्न किया, किंतु उसके भतीजे पुलकेशिन् द्वितीय ने इसका विरोध किया। फलस्वरूप गृहयुद्ध में मंगलेश के जीवन का अंत हुआ। पुलकेशिन् द्वितीय ने जो 609 में सिंहासन पर बैठा, एक बड़ा युद्ध अभियान जारी किया और मैसूर के कंदब, कोंकण के मौर्य, कन्नौज के हर्षवर्धन और कांची के पल्लवों को परास्त किया तथा लाट, मालवा, गुर्जर और कलिंग पर विजय प्राप्त की। उसके छोटे भाई विष्णुवर्धन् ने अपने लिये आंध्र प्रदेश जीता तो बादामी राज्य में मिला लिया गया। उसने सन् 615- 616 में इस राजकुमार को आंध्र का मुख्य शासक नियुक्त किया और तब उसका शासन राजकुमार और उसके उत्तराधिकारियों के हाथ में रहा, जो पूर्वी चालुक्यों के रूप में प्रसिद्ध थे। संभवत: पुलकेशिन् द्वितीय ने पल्लव नरसिंह वर्मन् से सन् 642 में वुद्ध करते हुए प्राण दिए। उसके राज्यकाल में सन् 641 में एक चीनी यात्री युवानच्वाङ् ने उसके राज्य का भ्रमण किया, जिसके संस्मरणों से उस काल में दक्षिण की आंतरिक स्थिति की झलक प्राप्त हो सकती है। पुलकेशिन् द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् 13 वर्ष तक दक्षिण का प्रांत पल्लवों के अधिकार में रहा। 655 ई. में उसके बेटे विक्रमादित्य प्रथम ने पल्लवों के अधिकार से अपना राज्य पुन: प्राप्त कर लिया। उसने अपनी सेनाएँ लेकर पल्लवों पर आक्रमण कर दिया और प्रदेश के एक भाग पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया, यद्यपि वह प्रभुत्व बहुत अल्प समय तक ही रहा। उसके प्रपौत्र विक्रमादित्य द्वितीय ने पल्लवों से पुन: बैर ठान लिया और उसकी राजधानी कांची को लूट लिया। विक्रमादित्य द्वितीय के राज्यकालांतर्गत (733-745 ई.) चालुक्य राज्य के उत्तरी भाग पर सिंध के अरबों ने आधिपत्य जमा लिया, किंतु अवनिजनाश्रय पुलकेशी नाम के उसके सामंत ने, जो चालुक्य वंश की पार्श्ववर्ती शाखा का सदस्य था तथा जिसक मुख्य स्थान नौसारी में था, आधिपत्यकारियों को खदेड़कर बाहर कर दिया। उसका पुत्र और उत्तराधिकारी कीर्तिवर्मन् द्वितीय आठवीं शताब्दी के मध्य राष्ट्रकूट दानीदुर्ग द्वारा पदच्युत किया गया


जैसा इससे पूर्व कहा जा चुका है, कुब्ज विष्णुवर्धन्, पुलकेशिन् द्वितीय का छोटा भाई, जो चालुक्य साम्राज्य के पूर्वी भाग का अधिष्ठाता था, 1915-16 ई. में आंध्र की राजधानी बेंगी के सिंहासन पर बैठा। पूर्वी चालुक्यवंशियों को राष्ट्रकूटों से दीर्घकालीन युद्ध करना पड़ा। अंत में राष्ट्रकूटों ने चालुक्यों की बादामी शासक शाखा को अपदस्थ कर दिया और दक्षिण पर अधिकार कर लिया। राष्ट्रकूट राजकुमार गोविंद द्वितीय ने आंध्र पर अधिकार कर लिया और तत्कालीन शासक कुब्ज विष्णुवर्धन् के दूरस्थ उत्तराधिकारी, विष्णुवर्धन चतुर्थ को आत्मसमर्पण के लिये बाध्य किया। विष्णुवर्धन् चतुर्थ अपने मुखिया गोविंद द्वितीय के पक्ष में राष्ट्रकूट ध्रुव तृतीय के विरुद्ध बंधुघातक युद्ध लड़ा और उसके साथ पराजय का साझीदार बना। उसने ध्रुव तृतीय और उसके पुत्र एवं उत्तराधिकारी गोविंद तृतीय के प्रभत्व को मान्यता दे दी। तदनंतर पुत्र विजयादित्य द्वितीय कई वर्षों तक स्वतंत्रता के लिये गोविंद तृतीय से लड़ा, किंतु असफल रहा। राष्ट्रकूट सम्राट् ने उसे अपदस्थ कर दिया और आंध्र के सिंहासन के लिये भीम सलुक्की को मनोनीत किया। गोविंद तृतीय की मृत्यु के पश्चात् उसके उत्तराधिकारी अमोघवर्ष प्रथम के राज्यकाल में विजयादित्य ने भीम सलुक्की को परास्त कर दिया, आंध्र पर पुन: अधिकार कर लिया ओर दक्षिण को जीतता हुआ, विजयकाल में कैंबे (खंभात) तक पहुँच गया जो ध्वस्त कर दिया गया था। तत्पश्चात् उसके प्रतिहार राज्य पर आक्रमण किया किंतु प्रतिहार वाग्भट्ट द्वितीय द्वारा पराजित हुआ। घटनावशात् शत्रुओं में तंग आकर उसे अपने देश की शरण लेनी पड़ी। विजयादित्य द्वितीय के पौत्र विजयादित्य तृतीय (844-888ई.) ने उत्तरी अर्काट के पल्लवों को पराजित किया, तंजोर के कोलाओं को उनके देश के पंड्याओं पर पुनर्विजय में सहायता दी, राष्ट्रकूट कृष्ण द्वितीय और उसके सबंधी दहाल के कलचुरी संकरगण और कालिंग के गंगों को परास्त किया और किरणपुआ तथा चक्रकूट नगरों को जलवा दिया। 10वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में गुहयुद्ध हुआ और बदप ने, जो चालुक्य साम्रज्य का पार्श्ववर्ती भाग था, राष्ट्रकूट कृष्ण तृतीय को सहायता देकर तत्कलीन चालुक्य शासक दानार्णव को परास्त कर दिया। फिर वेंगो के सिंहासन पर अवैध अधिकार कर लिया, जहाँ पर उसने और उसे उत्तराधिकारियों ने 999 ई. तक राज्य किया। अंत में दानार्णव के पुत्र शक्तिवर्मन् ने सभी शत्रुओं को परास्त करने और अपने देश में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। शक्तिवर्मन् का उत्तराधिकार उसके छोटे भाई विमलादित्य ने सँभाला। उसके पश्चात् उसका पुत्र राजराज (1018-60) उत्तराधिकारी हुआ। राजराज ने तंजोर के राजेंद्रचोल प्रथम की कन्या से विवाह किया और उससे उसको कुलोत्तुंग नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ जो अपने जीवन के प्रारंभिक दिनों में चोल राजधानी में अपनी नानी तथा राजेंद्रचोल की रानी के पास रहा। सन् 1060 में राजराज अपने सौतेले भाई विक्रमादित्य सप्तम द्वारा अदस्थ किया गया जो वेंगी के सिंहासन पर 1076 तक रहा। सन् 1070 में राजराज के पुत्र कुलोत्तुंग ने चोल देश पर सार्वभौमिक शासन किया और सन् 1076 में अपने चाचा विजादित्य सप्तम को पराजित कर आंध्र को अपने राज्य में मिला लिया। कुलोत्तुंग और उसके उत्तराधिकारी, जो "चोल" कहलाना पसंद करते थे, सन् 1271 तक चोल देश पर शासन करते रहे।

ऊपर इसका उल्लेख किया जा चुका है कि बादामी का चालुक्य कीर्तिवर्मन् द्वितीय 8वीं शती के मध्यभाग में राष्ट्रकूटों द्वारा पदच्युत कर दिया गया, जिन्होंने बाद में दक्षिण में दो सौ वर्षों से अधिक काल तक राज्य किया। इस काल में कीर्तिवर्मन् द्वितीय का भाई भीम और उसके उत्तराधिकारी राष्ट्रकूटों के सामंतों की हैसियत से बीजापुर जिले में राज्य करते रहे। इन सांमतों में अंतिम तैल द्वितीय ने दक्षिण में राष्ट्रकूटों के शासन को समाप्त कर दिया और 973 ई. में देश में सार्वभौम सत्ता स्थापित कर ली। वह बड़ी सफलता के साथ चोलों और गंगों से लड़ा और मालवा के राजा मुंज को बंदी बना लिया, जिसे अंत में उसने मरवा दिया। तैल की प्रारंभिक राजधानी मान्यखेट थी। सन् 993 के कुछ दिनों पश्चात् राजधानी का स्थानांतरण कल्याणी में हो गया जो अब बिहार में है। तैल का पौत्र जयसिंह (सन् 1015-1042) परमार भोज और राजेंद्र चोल से सफलतापूर्वक लड़ा। जयसिंह का बेटा सोमेश्वर (1042-1068) भी चोलों से बड़ी सफलतापूर्वक लड़ा और लाल, मालवा तथा गुर्जर को रौंद डाला। उसका उत्तराधिकार उसके पुत्र सोमेश्वर द्वितीय ने 1069 में सँभाला जिसे उसके छोटे भाई विक्रमादित्य षष्ठ ने 1076 ई. में अपदस्थ कर दिया। विक्रमादित्य कुलोत्तुंग प्रथम से आंध्र देश पर अधिकार करने के निमित्त लड़ा। युद्ध के विभिन्न परिणाम हुए और कुलोत्तंग प्रथम की मृत्यु के पश्चात् (1018 ई.) कुछ काल तक के लिये विक्रमादित्य ने उस प्रदेश कर अपना प्रभुत्व स्थापित रखा। उसने द्वारसमुद्र के "होयसलों" और देवगिरि के यादवों के विद्रोहों का दमन किया और लाल तथा गुर्जर को लूट लिया। उसके दरबार की शोभा कश्मीरी कवि "विल्हण" से थी, जिसने विक्रमांकदेवचरित लिखा है। विक्रमादित्य षष्ठ के पौत्र तैल तृतीय के शासनकाल में सन् 1156 में कलचुरी बिज्जल ने दक्षिण पर सार्वभौम अधिकार कर लिया और चालुक्य सम्राट् की मृत्यु के पश्चात् सन् 1163 में अपने को सम्राट् घोषित कर दिया। तैल तृतीय के पुत्र सोमेश्वर चतुर्थ ने 1181 में कलचुरी से पुन: राजसिंहासन छीन लिया, किंतु 1184 के लगभग फिर यादव भिल्लम को समर्पण करना पड़ा। उसके उत्तराधिकारियों के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं हैं। चालुक्यवंश की तीन प्रमुख शाखाओं के साथ, जिनका उल्लेख पहले किया जा चुका है, कुछ दूसरी शाखाएँ भी थीं जिन्होंने दक्षिण आंध्र और गुजरात आदि के कुछ भागों में प्रारंभिक काल में शासन किया।


संस्कृति
बादामी के चालुक्य

उत्तरी कर्नाटक के पत्तडकल में प्राचीन कन्नड़ अभिलेख
चालुक्य नरेशों की पूर्ण उपाधि सत्याश्रय श्री पृथिवीवल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर भट्टारक थी। इसमें से परमेश्वर का सर्वप्रथम उपयोग हर्षवर्धन पर पुलकेशिन् द्वितीय की विजय के बाद हुआ और महाराजाधिराज तथा भट्टारक सर्वप्रथम विक्रमादित्य प्रथम के समय प्रयुक्त हुए। राजवंश के योग्य व्यक्तियों को राज्य में अधिकार के पदों पर नियुक्त किया जाता था। राज्य में रानियों का महतव भी नगण्य नहीं होता था। विजित प्रदेश के शासकों को विजेता की अधीनता स्वीकार कर लेने पर शासन पर अधिकार फिर से प्राप्त हो जाता था। अभिलेखों में सामंत और महत्तर के अतिरिक्त विषयपति, देशधिपति, महासांधिविग्रहिक, गामुंड, ग्रामभोगिक और करण के उल्लेख मिलते हैं। राज्य राष्ट्र, विषय, नाडु और ग्रामों में विभक्त था। राज्य के करों में निधि, उपनिधि, क्लृप्त, उद्रंग और उपरिकर के अतिरिक्त मारुंच, आदित्युंच, उचमन्न और मरुपन्न आदि स्थानीय करों के उल्लेख हैं। मकानों और उत्सवों पर भी कर था। व्यापारी संघ स्वयं अपने ऊपर भी कर लगाया करते थे। चालुक्यों को सेना संगठित और शाक्तिशाली थी। इसका उल्लेख युवानच्वाङ् ने किया है और इसका समर्थन चालुक्यों की विजयों से, विशेष रूप से हर्ष पर सिद्ध होता है। उसका कहना है कि पराजित सेनापति को कोई दंड नहीं दिया जाता, केवल उसे स्त्रियों के वस्त्र पहनने पड़ते हैं। चालुक्यों की नौसेना की शक्ति भी नगण्य नहीं थी।

युवान च्वांङ् ने लिखा है मिट्टी अच्छी और उपजाऊ है, बराबर जोती जाती है और इससे बहुत अधिक उपज होती है। उसने महाराष्ट्र के निवासियों को गर्वीला और युद्धप्रिय बतलाया है एवं कहा है कि वे उपकार के प्रति कृतज्ञ और अपकार के प्रति प्रतिशोधक होते है, विपन्न और शरणगत के लिये वे आत्मबलिदान तक करने को तत्पर रहते हैं और अपमान करनेवाले की हत्या की उन्हें पिपासा होती है। स्त्रियों में उच्चकुलों में शिक्षा के प्रसार के कई प्रमाण हैं। मंदिर सामाजिक तथा आर्थिक जीवन के विशिष्ट केंद्र थे। आर्थिक जीवन में श्रेणियों का महत्व था। कांस्यकार और तेलियों की श्रेणियों के उल्लेख अभिलेखों में मिलते हैं। लक्ष्मेश्वर के अभिलेख में युवराज विक्रमादित्य द्वारा पोरिगिरे स्थान के महाजनों, नगर और 18 प्रकृतियों को दी गई आचारव्यवस्था का विवरण है। राज्य की ओर से तौल और मान में आदर्श रूप प्रस्तुत किया गया था।

ब्राह्मण धर्म उन्नति पर था। चालुक्य नरेश विष्णु अथवा शिव के उपासक थे। उन्होंने इन देवताओं की पूजा के लिये पट्टकल, बादामी आदि स्थानों पर भव्य मंदिर निर्मित किए। ग्रहण के अवसर पर वे दान देते थे और स्मृतियों के आदर्श पर व्रत और दान करते थे। वे वैदिक यज्ञों का अनुष्ठान करते थे और विद्वान् ब्राह्मणों का संत्कार करते थे। किंतु धार्मिक विषयों में वे सहिष्णु थे तथा जैनियों का आदर करते थे। और उन्हें भी दान देते थे। चालुक्य राज्य में जैन धर्म उन्नत दशा में था। राज्य में कई उल्लेखनीय जैन मंदिर भी बनवाए गए। बौद्ध धर्म की स्थिति के लिये हमारे पास कोई समकालीन पुरातत्व का प्रमाण नहीं है। युवान च्वाङ् का कथन है कि महाराष्ट्र में सौ से ऊपर बौद्ध विहार और पाँच हजार से ऊपर बौद्ध भिक्षु थे।

युवानच्वांड के अनुसार लोगों को ज्ञानार्जन की रुचि थी। राजवंश के व्यक्ति स्वयं विद्याओं और शास्त्रों का अध्ययन करते थे और विद्वानों को दान के द्वारा प्रोत्साहन देते थे। वातापी शिक्षा और ज्ञान के केंद्र के रूप में प्रसिद्ध थी। संस्कृत साहित्य के विभिन्न अंगों का अध्ययन होता था। अभिलेखों की भाषाशैली पर प्रसिद्ध काव्यग्रंथों का प्रभाव स्पष्ट है। एहोळे प्रशस्ति की रचना जैन कवि रविकीर्ति ने की थी। जैनेंद्र व्याकरण के रचयिता पूज्यवाद इसी काल के थे। विजयांका अथवा विज्जिका, जिसकी गणना राजशेखर ने वैदर्भी शैली का प्रयाग करने में केवल कालिदास के बाद की है, संभवत: चंद्रादित्य की रानी विजयभट्टारिका ही थी। सोमदेवसूरि ने यशस्तिलकचंपू और नीतिवाक्या मृत की रचना वेमुलवाड के चालुक्यों के संरक्षण में की थी। कन्नड साहित्य के इतिहास में भी इस काल का योगदान महत्वपूर्ण है। श्री वर्धदेव ने तत्वार्थमहाशास्त्र पर चूडामणि नाम की टीका लिखी। श्यामकुंदाचार्य प्राकृत, संस्कृत और कर्णाट भाषाओं के लेखक के रूप में प्रसिद्ध हैं। कन्नड भाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि और आदिपुराण तथा विक्रमार्जुनविजय के रचयिता पंप वेमुलवाड के चालुक्य नरेश अरिकेसरि द्वितीय के दरबार में थे।

ऐहोले, मेगृति और बादामी के मंदिरों से दक्षिण के मंदिरों का इतिहास प्रारंभ होता है। पट्टकल के मंदिरों में इनके विकास का दूसरा चरण परिलक्षित होता है इन मंदिरों से मूर्तियों की संख्या में वृद्धि के साथ ही इनकी शैली में भी विकास मिलता है। ठोस चट्टानों को काटकर मंदिरों का निर्माण करने की कला में अद्भुत कुशलता दिखलाई पड़ती है। लोकेश्वर मंदिर के निर्माता श्रीगुंडन् अनिवारिताचारि ने अनेक नगरों की निर्माणयोजना की थी और अनेक वास्तु, यान, आसन, शयन, मणिमुकुट और रत्नचूड़ामणि आदि बनाए थे। वह त्रिभुवनाचारि और दक्षिण देश के सूत्रधार के रूप में प्रसिद्ध थे। विद्वान् अजंता के भित्तिचित्रों में से कुछ को इसी काल की कृति मानते हैं। पट्टदकल के अभिलेख में भी शिल्पकारों और मूर्तिकारों के एक वंश की तीन पीढ़ियों का उल्लेख है। एक अभिलेख में भरत की परंपरा पर आधारित नृत्य के एक नए ग्रंथ की लोकप्रियता का उल्लेख है जिसने अन्य विरोधी पद्धतियों पर विजय प्राप्त की थी।


कल्याणी के चालुक्य[संपादित करें]

लकुंडी (गडग जिला) में स्थित जैन मंदिर

इनके राजचिह्रों में मयूरध्वज भी था। इनका पूर्ण विरुद था- समस्त भुवनाश्रय श्रीपृथिवीवल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर परमभट्टारक सत्याश्रयकुलतिलक चालुक्याभरण श्रीमत् -जिसके अंत में मल्ल अंतवाली राजा की विशिष्ट उपाधि होती थी। राजवंश के व्यक्तियों को विभिन्न प्रदेशों के करों का भाग भुक्ति के रूप में मिलता था। युवराज को राज्य के दो प्रमुख प्रांतों का शासन दिया जाता था। सामंतों के अभिलेखों में उनके अधिपति के वंशावली के बाद "तत्पाद पद्मोपजीवि" के साथ उनका स्वयं का उल्लेख होता था। उनके अभिलेख में राज्य की उत्तरोत्तर अभिवृद्धि और आचंद्रार्क-स्थायित्व सूचक शब्दों का अभाव होता था। स्त्रियों को भी प्रांत और दूसरे प्रादेशिक विभाजनों का शासन दे दिया जाता था। चालुक्यों के अभिलेखों में कई राजगुरुओं के उल्लेख हैं। राज्य के वैभव के प्रदर्शन की भावना बढ़ रही थी। इसी के साथ शासनव्यवस्था की जटिलता बढ़ रही थी। उदाहरणार्थ, सांधिविग्रहिक के साथ ही हमें कन्नडसांधिविग्रहिक, लाटसांधिविग्रहिक और हेरिसांधिविग्रहिक के उल्लेख मिलते हैं। राजभवन में सेवकों और अधिकारियों में कई रंग दिखलाई पड़ते हैं। चालुक्य अभिलेखों में अनेक योग्य मंत्रियों तथा अधिकारियों के नाम मिलते हैं जिन्होंने चालुक्यों के गौरव को बढ़ाने में विशेष योग दिया था। ऐसे अधिकारी प्राय: एक से अधिक पदों पर रहते थे। विशिष्ट गौरवप्राप्त अधिकारियों और विशिष्ट सैनिकों का एक वर्ग था जे सहवासि कहलाता था। वह सदैव सम्राट् के साथ रहता था और उसकी सेवा में प्राण तक त्यागने के लिये प्रस्तुत रहता था। पद प्राय: वंशगत होते थे और वेतन के स्थान पर भुक्ति अथवा कर का भाग देने का प्रचलन था। विशिष्ट सेवा के लिये विशेष उपाधियों और विशेष चिह्रों के उपयोग का अधिकार दिया जाता था। सैनिक अधिकारियों में सेनाधिपति, महादंडनायक, दंडनायक और कतितुरगसाहिनि के उल्लेख मिलते हैं। सेना में सभी जाति और वर्ग के लोग संमिलित होते थे। राज्य राष्ट्र, विषय, नाड्ड, कंपण और ठाण में विभक्त था। किंतु इन प्रादेशिक विभाजनों के साथ अभिलेखों में जो संख्याएँ प्रयुक्त हुई हैं उनका निश्चित महत्व अभी तक नहीं स्पष्ट हो पाया है। शासन में स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं का विशेष स्थान था। इनमें से कुछ का स्वरूप सामाजिक और धार्मिक भी था। नगरों का प्रबंध करनेवाली सभाएँ महाजन के नाम से प्रसिद्ध थीं। गांवों की संस्थाएँ, जो मुख्यत: चोल संस्थाओं जैसी थीं, पहले की तुलना में अधिक सक्रिय थीं। ये सामूहिक संस्थाएँ परस्पर सहयोग के साथ काम करती थीं और सामाजिक जीवन में उपयोगी अनेक कार्यों का प्रबंध करती थीं। गाँव के अधिकारियों में उरोडेय, पेर्ग्गडे, गार्वुड, सेनबोव और कुलकर्णि के नाम मिलते हैं। राज्य द्वारा लिए जानेवाले कर प्रमुख रूप से दो प्रकार के थे : आय, यथा सिद्धाय, पन्नाय और दंडाय तथा शुंक, यथा वड्डरावुलद शुंक, पेर्ज्जुक और मन्नेय शुंक। इनके अतिरिक्त अरुवण, बल्लि, करवंद, तुलभोग और मसतु का भी निर्देश है। मनेवण गृहकर था, कन्नडिवण (दर्पणक) संभवत: नर्तकियों से लिया जाता था और बलंजीयतेरे व्यापारियों पर था। विवाह के लिये बनाए गए शामियानों पर भी कर का उल्लेख मिलता हैं। इस काल क संस्कृति का स्वरूप उदार और विशाल था और उसमें भारत के अन्य भागों के प्रभाव भी समाविष्ट कर लिए गए थे। स्त्रियों के सामाजिक जीवन में भाग लेने पर बंधन नहीं थे। उच्च वर्ग की स्त्रियों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था थी। नर्तकियों (सूलेयर) की संख्या कम नहीं थी। सतीप्रथा के भी कुछ उल्लेख मिलते हैं। महायोग, शूलब्रह्म और सल्लेखन आदि विधियों से प्राणोत्सर्ग के कुछ उदाहरण मिलते हैं। दिवंगत संबंधी, गुरु अथवा महान व्यक्तियों की स्मृति में निर्माण कराने को परोक्षविनय कहते थे। पोलो जैसे एक खेल का चलन था। मंदिर सामाजिक और आर्थिक जीवन के भी केंद्र थे। उनमें नृत्य, गीत और नाटक के आयोजन होते थे। संगीत में राजवंश के कुछ व्यक्तियों की निपुणता का उल्लेख मिलता है। सेनापति रविदेव के लिये कहा गया है कि जब वह अपना संगीत प्रस्तुत करता था, लोग पूछते थे कि क्या यह मधु की वर्षा अथवा सुधा की सरिता नहीं हैं?

कृषि के लिये जलाशयों के महत्व के अनुरूप ही उनके निर्माण और उनकी मरम्मत के लिये समुचित प्रबंध होता था। आर्थिक दृष्टि से उपयोगी फसलें, जैसे पान, सुपारी कपास और फल, भी पैदा की जाती थीं। उद्योगों और शिल्पों की श्रेणियों के अतिरिक्त व्यापारियों के भी संघ थे। व्यापारियों ने कुछ संघ, तथा नानादेशि और तिशैयायिरत्तु ऐंजूर्रुवर् का संगठन अत्यधिक विकसित था और वे भारत के विभिन्न भागों और विदेशों के साथ व्यापार करते थे। इस काल के सिक्कों के नाम हैं- पोन् अथवा गद्याण, पग अथवा हग, विस और काणि। जयसिंह, जगदेकमल्ल और त्रैयोक्यमल्ल के नाम के सोने और चाँदी के सिक्के उपलब्ध होते हैं। मत्तर, कम्मस, निवर्तन और खंडुग भूमि नापने की इकाइयाँ थी किंतु नापने के दंड का कोई सुनिश्चित माप नहीं था। संभवत: राज्य की ओर से नाप की इकाइयों का व्यवस्थित और निश्चित करने का प्रयत्न हुआ था।

सहनशीलता और उदारता इस युग के धार्मिक जीवन की विशेषताएँ थीं। सभी धर्म और संप्रदाय समान रूप से राजाओं और सामंतों के दान के पात्र थे। ब्राह्मण धर्म में शिव और विष्णु की उपासना का अधिक प्रचलन था, इनमें भी शिव की पूजा राजवंश और देश दोनों में ही अधिक जनप्रिय थी। कलचूर्य लोगों के समय में लिंगायत संप्रदाय के महत्व में वृद्धि हुई थी। कोल्लापुर महालक्ष्मी की शाक्त विधि से पूजा का भी अत्यधिक प्रचार था। इसके बाद कार्तिकेय की पूजा का महत्व था। बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद्र बेल व गावे और डंबल थे। किंतु बौद्ध धर्म की तुलना में जैन धर्म का प्रचार अधिक था।

वेद, व्याकरण और दर्शन की उच्च शिक्षा के निमित्त राज्य में विद्यालय या घटिकाएँ थीं जिनकी व्यवस्था के लिये राज्य से अनुदान दिए जाते थे। देश में ब्राह्मणों के अनेक आवास अथवा ब्रह्मपुरी थीं जो संस्कृत के विभिन्न अंगों के गहन अध्ययन के केंद्र थीं।

वादिराज ने जयसिंह द्वितीय के समय में पार्श्वनाथचरित और यशोधरचरित्र की रचना की। विल्हण की प्रसिद्ध रचना विक्रमांकदेवचरित में विक्रमादित्य षष्ठ के जीवनचरित् का विवरण है। विज्ञानेश्वर ने याज्ञवल्क्य स्मृति पर अपनी प्रसिद्ध टीका मिताक्षरा की रचना विक्रमादित्य के समय में ही की थी। विज्ञानेश्वर के शिष्य नारायण ने व्यवहारशिरोमणि की रचना की थी। मानसोल्लास अथवा अभिलषितार्थीचिंतामणि जिसमें राजा के हित और रुचि के अनेक विषयों की चर्चा है सोमेश्वर तृतीय की कृति थी। पार्वतीरुक्तिमणीय का रचयिता विद्यामाधव सोमेश्वर के ही दरबार में था। सगीतचूड़ामणि जगदेकमल्ल द्वितीय की कृति थी। संगीतसुधाकर भी किसी चालुक्य राजकुमार की रचना थी। कन्नड़ साहित्य के इतिहास में यह युग अत्यंत समृद्ध था। कन्नड भाषा के स्वरूप में भी कुछ परिवर्तन हुए। षट्पदी और त्रिपदी छंदों का प्रयोग बढ़ा। चंपू काव्यों की रचना का प्रचलन समाप्त हो चला। रगले नाम के विशेष प्रकार के गीतों की रचना का प्रारंभ इसी काल में हुआ। कन्नड साहित्य के विकास में जैन विद्वानों का प्रमुख योगदान था। सुकुमारचरित्र के रचयिता शांतिनाथ और चंद्रचूडामणिशतक के रचयिता नागवर्माचार्य इसी कल में हुए। रन्न ने, जो तैलप के दरबार का कविचक्रवर्ती था, अजितपुराण और साहसभीमविजय नामक चंपू, रन्न कंद नाम का निघंटु और परशुरामचरिते और चक्रेश्वरचरिते की रचना की। चामंुडराय ने 978 ई. में चामुंडारायपुराण की रचना की। छंदोंबुधि और कर्णाटककादंबरी की रचना नागवर्मा प्रथम ने की थी। दुर्गसिंह ने अपने पंचतंत्र में समकालीन लेखकों में मेलीमाधव के रचयिता कर्णपार्य, एक नीतिग्रंथ के रचयिता कविताविलास और मदनतिलक के रचयिता चंद्रराज का उल्लेख किया है। श्रीधराचार्य को गद्यपद्यविद्याधर की उपाधि प्राप्त थी। चंद्रप्रभचरिते के अतिरिक्त उसने जातकतिलक की रचना की थी जो कन्नड में ज्योतिष का प्रथम ग्रंथ है। अभिनव पंप के नाम से प्रसिद्ध नागचंद्र ने मल्लिनाथपुराण और रामचंद्रचरितपुराण की रचना की। इससे पूर्व वादि कुमुदचंद्र ने भी एक रामायण की रचना की थी। नयसेन ने धर्मामृत के अतिरिक्त एक व्याकरण ग्रंथ भी रचा। नेमिनाथपुराण कर्णपार्य की कृति है। नागवर्मा द्वितीय ने काव्यालोकन, कर्णाटकभाषाभूषण और वास्तुकोश की रचना की। जगद्दल सोमनाथ ने पूज्यवाद के कल्याणकारक का कन्नड में अनुवाद कर्णाटक कल्याणकारक के नाम से किया। कन्नड गद्य के विकास में वीरशैव लोगों का विशेष योगदान था। प्राय: दो सौ लेखकों के नाम मिलते हैं जिनमें कुछ उल्लेखनीय लेखिकाएँ भी थीं। बसव और अन्य वीरशैव लेखकों ने वचन साहित्य को जन्म दिया जिसमें साधारण जनता में वीरशैव सिद्धांतों के प्रचलन के लिये सरल भाषा का उपयोग किया गया। कुछ लिंगायत विद्वानों ने कन्नड साहित्य के अन्य अंगों को भी समृद्ध किया।

अभिलेखों में प्रस्तर के कुछ कुशल शिल्पियों के नाम मिलते हैं यथा शंकरार्य, नागोज और महाकाल। चालुक्य मंदिरों की बाहरी दीवारों और दरवाजों पर सूक्ष्म अलंकारिता मिलती है। मंदिरों के मुख्य प्रवेशद्वार पार्श्व में हैं। विमान और दूसरे विषयों में भी इन मंदिरों का विकसित रूप होयसल मंदिरों में दिखलाई पड़ता है। इन मंदिरों के कुछ उल्लेखनीय उदाहरण हैं लक्कुंदि में काशिविश्वेश्वर, इत्तगि में महादेव और कुरुवत्ति में मल्लिकार्जुन का मंदिर।


वंशावली >>
पुलकेसि १ (543 - 566)
कीर्तिवर्मन् १ (566 - 597)
मंगलेश (597 - 609)
पुलकेसि २ (609 - 642)
विक्रमादित्य १ चालुक्य (655 - 680)
विनयादित्य (680 -696)
विजयादित्य (696 - 733)
विक्रमादित्य २ चालुक्य (733 – 746)
कीर्तिवर्मन् २ (746 – 753)
दन्तिदुर्ग (राष्ट्रकूट साम्राज्य) (735-756) ने चालुक्य साम्राज्य को पराजित कर राष्ट्रकूट साम्राज्य की नींव डाली


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चोल राजवंश / Chola Kingdom

चोल राजवंश / Chola Kingdom

चोल (तमिल - சோழர்) प्राचीन भारत का एक राजवंश था। चोल शब्द की व्युत्पत्ति विभिन्न प्रकार से की जाती रही है। कर्नल जेरिनो ने चोल शब्द को संस्कृत "काल" एवं "कोल" से संबद्ध करते हुए इसे दक्षिण भारत के कृष्णवर्ण आर्य समुदाय का सूचक माना है।
चोल शब्द को संस्कृत "चोर" तथा तमिल "चोलम्" से भी संबद्ध किया गया है किंतु इनमें से कोई मत ठीक नहीं है। आरंभिक काल से ही चोल शब्द का प्रयोग इसी नाम के राजवंश द्वारा शासित प्रजा और भूभाग के लिए व्यवहृत होता रहा है। संगमयुगीन मणिमेक्लै में चोलों को सूर्यवंशी कहा है। चोलों के अनेक प्रचलित नामों में शेंबियन् भी है। शेंबियन् के आधार पर उन्हें शिबि से उद्भूत सिद्ध करते हैं। 12वीं सदी के अनेक स्थानीय राजवंश अपने को करिकाल से उद्भत कश्यप गोत्रीय बताते हैं

चोलों के उल्लेख अत्यंत प्राचीन काल से ही प्राप्त होने लगते हैं। कात्यायन ने चोडों का उल्लेख किया है। अशोक के अभिलेखों में भी इसका उल्लेख उपलब्ध है। किंतु इन्होंने संगमयुग में ही दक्षिण भारतीय इतिहास को संभवत: प्रथम बार प्रभावित किया। संगमकाल के अनेक महत्वपूर्ण चोल सम्राटों में करिकाल अत्यधिक प्रसिद्ध हुए संगमयुग के पश्चात् का चोल इतिहास अज्ञात है। फिर भी चोल-वंश-परंपरा एकदम समाप्त नहीं हुई थी क्योंकि रेनंडु (जिला कुडाया) प्रदेश में चोल पल्लवों, चालुक्यों तथा राष्ट्रकूटों के अधीन शासन करते रहे।



चोलों का उदय
उपर्युक्त दीर्घकालिक प्रभुत्वहीनता के पश्चात् नवीं सदी के मध्य से चोलों का पुनरुत्थन हुआ। इस चोल वंश का संस्थापक विजयालय (850-870-71 ई.) पल्लव अधीनता में उरैयुर प्रदेश का शासक था। विजयालय की वंशपरंपरा में लगभस 20 राजा हुए, जिन्होंने कुल मिलाकर चार सौ से अधिक वर्षों तक शासन किया। विजयालय के पश्चात् आदित्य प्रथम (871-907), परातंक प्रथम (907-955) ने क्रमश: शासन किया। परांतक प्रथम ने पांड्य-सिंहल नरेशों की सम्मिलित शक्ति को, पल्लवों, बाणों, बैडुंबों के अतिरिक्त राष्ट्रकूट कृष्ण दि्वतीय को भी पराजित किया। चोल शक्ति एव साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक परांतक ही था। उसने लंकापति उदय (945-53) के समय सिंहल पर भी एक असफल आक्रमण किया। परांतक अपने अंतमि दिनों में राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्ण तृतीय द्वारा 949 ई. में बड़ी बुरी तरह पराजित हुआ। इस पराजय के फलस्वरूप चोल साम्राज्य की नींव हिल गई। परांतक प्रथम के बाद के 32 वर्षों में अनेक चोल राजाओं ने शासन किया। इनमें गंडरादित्य, अरिंजय और सुंदर चोल या परातक दि्वतीय प्रमुख थे।

इसके पश्चात् राजराज प्रथम (985-1014) ने चोल वंश की प्रसारनीति को आगे बढ़ाते हुए अपनी अनेक विजयों द्वारा अपने वंश की मर्यादा को पुन: प्रतिष्ठित किया। उसने सर्वप्रथम पश्चिमी गंगों को पराजित कर उनका प्रदेश छीन लिया। तदनंतर पश्िचमी चालुक्यों से उनका दीर्घकालिक परिणामहीन युद्ध आरंभ हुआ। इसके विपरीत राजराज को सुदूर दक्षिण में आशातीत सफलता मिली। उन्होंने केरल नरेश को पराजित किया। पांड्यों को पराजित कर मदुरा और कुर्ग में स्थित उद्गै अधिकृत कर लिया। यही नहीं, राजराज ने सिंहल पर आक्रमण करके उसके उत्तरी प्रदेशों को अपने राज्य में मिला लिया।

राजकाज ने पूर्वी चालुक्यों पर आक्रमण कर वेंगी को जीत लिया। किंतु इसके बाद पूर्वी चालुक्य सिंहासन पर उन्होंने शक्तिवर्मन् को प्रतिष्ठित किया और अपनी पुत्री कुंदवा का विवाह शक्तविर्मन् के लघु भ्राता विमलादित्य से किया। इस समय कलिंग के गंग राजा भी वेंगी पर दृष्टि गड़ाए थे, राजराज ने उन्हें भी पराजित किया।

राजराज ने पश्चात् उनके पुत्र राजेंद्र प्रथम (1012-1044) सिंहासनारूढ़ हुए। राजेंद्र प्रथम भी अत्यंत शक्तिशाली सम्राट् थे। राजेंद्र ने चेर, पांड्य एवं सिंहल जीता तथा उन्हें अपने राज्य में मिला लिया। उन्होंने पश्चिमी चालुक्यों को कई युद्धों में पराजित किया, उनकी राजधानी को ध्वस्त किया किंतु उनपर पूर्ण विजय न प्राप्त कर सके। राजेंद्र के दो अन्य सैनिक अभियान अत्यंत उल्लेखनीय हैं। उनका प्रथम सैनिक अभियान पूर्वी समुद्रतट से कलिंग, उड़ीसा, दक्षिण कोशल आदि के राजाओं को पराजित करता हुआ बंगाल के विरुद्ध हुआ। उन्होंने पश्चिम एवं दक्षिण बंगाल के तीन छोटे राजाओं को पराजित करने के साथ साथ शक्तिशाली पाल राजा महीपाल को भी पराजित किया। इस अभियान का कारण अभिलेखों के अनुसार गंगाजल प्राप्त करना था। यह भी ज्ञात होता है कि पराजित राजाओं को यह जल अपने सिरों पर ढोना पड़ा था। किंतु यह मात्र आक्रमण था, इससे चोल साम्राज्य की सीमाओं पर कोई असर नहीं पड़ा।

राजेंद्र का दूसरा महत्वपूर्ण आक्रमण मलयद्वीप, जावा और सुमात्रा के शैलेंद्र शासन के विरुद्ध हुआ। यह पूर्ण रूप से नौसैनिक आक्रमण था। शैलेंद्र सम्राटों का राजराज से मैत्रीपूर्ण व्यवहार था किंतु राजेंद्र के साथ उनकी शत्रुता का कारण अज्ञात है। राजेंद्र को इसमें सफलता मिली। राजराज की भाँति राजेंद्र ने भी एक राजदूत चीन भेजा।

राजाधिराज प्रथम (1018-1054) राजेंद्र का उत्तराधिकारी था। उसका अधिकांश समय विद्रोहों के शमन में लगा। आरंभ में उसने अनेक छोटे छोटे राज्यों, तथा चेर, पांड्य एवं सिंहल के विद्रोहों का दमन किया। अनंतर इसके चालुक्य सोमेश्वर से हुए कोप्पम् के युद्ध में उसकी मृत्यु हुई। युद्धक्षेत्र में ही राजेंद्र द्वितीय (1052-1064) अभिषिक्त हुए। चालुक्यों के विरुद्ध हुए इस युद्ध में उनकी विजय हुई। चालुक्यों के साथ युद्ध दीर्घकालिक था। राजेंद्र द्वितीय के उत्तराधिकारी वीर राजेंद्र (1063-1069) ने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की और प्राय: संपूर्ण चोल साम्राज्य पर पूर्ववत् शासन किया। अधिराजेंद्र (1067-1070) वीर राजेंद्र का उत्तराधिकारी था किंतु कुछ महीनों के शासन के बाद कुलोत्तुंग प्रथम ने उससे चोल राज्यश्री छीन ली।

कुलोत्तुंग प्रथम (1070-1120) पूर्वी चालुक्य सम्राट् राजराज का पुत्र था। कुलोत्तुंग की माँ एवं मातामही क्रमश: राजेंद्र (प्रथम) चोल तथा राजराज प्रथम की पुत्रियाँ थीं। कुलोत्तंुग प्रथम स्वयं राजेंद्र द्वितीय की पुत्री से विवाहित था। कुलोत्तुंग ने अपने विपक्ष एवं अधिराजेंद्र के पक्ष से हुए समस्त विद्रोहों का दमन करके अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली। अपने विस्तृत शासनकाल में उसने अधिराजेंद्र के हिमायती एवं बहनोई चालुक्य सम्राट् विक्रमादित्य के अनेक आक्रमणों एवं विद्रोहों का सफलतापूर्वक सामना किया। सिंहल फिर भी स्वतंत्र हो ही गया। युवराज विक्रम चोल के प्रयास स कलिंग का दक्षिणी प्रदेश कुलोत्तुंग के राज्य में मिला लिया गया। कुलोत्तुंग ने अपने अंतिम दिनों तक सिंहल के अतिरिक्त प्राय: संपूर्ण चोल साम्राज्य तथा दक्षिणी कलिंग प्रदेश पर शासन किया। उसने एक राजदूत भी चीन भेजा।

विक्रम चोल (1118-1133) कुलोत्तुंग का उत्तराधिकारी हुआ। लगभग 1118 में विक्रमादित्य छठे ने वेंगी चोलों से छीन ली। होयसलों ने भी चोलों को कावेरी के पार भगा दिया और मैसूर प्रदेश को अधिकृत कर लिया।

कुलोत्तुंग प्रथम के बाद का लगभग सौ वर्ष का चोल इतिहास अधिक महत्वपूर्ण नहीं है। इस अवधि में विक्रम चोल, कुलोत्तुंग द्वितीय (1133-1150), राजराज द्वितीय (1146-1173), राजाधिराज द्वितीय (1163-1179), कुलोत्तुंग तृतीय (1178-1218) ने शासन किया। इन राजाओं के समय चोलों का उत्तरोत्तर अवसान होता रहा। राजराज तृतीय (1216-1246) को पांड्यों ने बुरी तरह पराजित किया और उसकी राजधानी छीन ली। चोल सम्राट् अपने आक्रामकों एवं विद्रोहियों के विरुद्ध शक्तिशाली होयसलों से सहायता लेते थे और इसी कारण धीरे-धीरे वे उनके साथ की कठपुतली बन गए। राजराज को एकबार पांड्यों से पराजित होकर भागते समय कोप्पेरुंजिग ने आक्रमण कर बंदी बना लिया, पर छोड़ दिया।

चोल वंश का अंतिम राजा राजेंद्र तृतीय (1246-1279) हुआ। आरंभ में राजेंद्र को पांड्यों के विरुद्ध आंशिक सफलता मिली, किंतु ऐसा प्रतीत होता है कि तेलुगु-चोड साम्राज्य पर गंडगोपाल तिक्क राजराज तृतीय की नाममात्र की अधीनता में शासन कर रहा था। गणपति काकतीय के कांची आक्रमण के पश्चात् तिक्क ने उसी की अधीनता स्वीकार की। अंतत: जटावर्मन् सुंदर पांड्य ने उत्तर पर आक्रमण किया और चोलों को पराजित किया। इसके बाद से चोल शासक पांड्यों के अधीन रहे और उनकी यह स्थिति भी 1310 में मलिक काफूर के आक्रमण से समाप्त हो गई। (चोल सम्राट् साधारणतया अपने राज्य का आरंभ अपने यौवराज्याभिषेक से मानते थे और इसीलिए उनके काल के कुछ आरंभिक वर्ष एवं उनके तत्काल पूर्ववर्ती सम्राट् के कुछ अंतिम वर्षों में समानता प्राप्त होती है


शासन व्यवस्था[संपादित करें]
चोलो के अभिलेखों आदि से ज्ञात होता है कि उनका शासन सुसंगठित था। राज्य का सबसे बड़ा अधिकारी राजा मंत्रियों एवं राज्याधिकारियों की सलाह से शासन करता था। शासनसुविधा की दृष्टि से सारा राज्य अनेक मंडलों में विभक्त था। मंडल कोट्टम् या बलनाडुओं में बँटे होते थे। इनके बाद की शासकीय परंपरा में नाडु (जिला), कुर्रम् (ग्रामसमूह) एवं ग्रामम् थे। चोल राज्यकाल में इनका शासन जनसभाओं द्वारा होता था। चोल ग्रामसभाएँ "उर" या "सभा" कही जाती थीं। इनके सदस्य सभी ग्रामनिवासी होते थे। सभा की कार्यकारिणी परिषद् (आडुगणम्) का चुनाव ये लोग अपने में से करते थे। उत्तरमेरूर से प्राप्त अभिलेख से उस ग्रामसभा के कार्यों आदि का विस्तृत ज्ञान प्राप्त होता है। उत्तरमेरूर ग्रामशासन सभा की पाँच उपसमितियों द्वारा होता था। इनके सदस्य अवैतनिक थे एवं उनका कार्यकाल केवल वर्ष भर का होता था। ये अपने शासन के लिए स्वतंत्र थीं एवं सम्राटादि भी उनकी कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं कर सकते थे।

चोल शासक प्रसिद्ध भवननिर्माता थे। सिंचाई की व्यवस्था, राजमार्गों के निर्माण आदि के अतिरिक्त उन्होंने नगरों एवं विशाल मंदिर तंजौर में बनवाया। यह प्राचीन भारतीय मंदिरों में सबसे अधिक ऊँचा एवं बड़ा है। तंजौर के मंदिर की दीवारों पर अंकित चित्र उल्लेखनीय एवं बड़े महत्वपूर्ण हैं। राजेंद्र प्रथम ने अपने द्वारा निर्मित नगर गंगैकोंडपुरम् (त्रिचनापल्ली) में इस प्रकार के एक अन्य विशाल मंदिर का निर्माण कराया। चोलों के राज्यकाल में मूर्तिकला का भी प्रभूत विकास हुआ। इस काल की पाषाण एवं धातुमूर्तियाँ अत्यंत सजीव एवं कलात्मक हैं।

चोल शासन के अंतर्गत साहित्य की भी बड़ी उन्नति हुई। इनके शाक्तिशाली विजेताओं की विजयों आदि को लक्ष्य कर अनेकानेक प्रशस्ति पूर्ण ग्रंथ लिखे गए। इस प्रकार के ग्रंथों में जयंगोंडार का "कलिगंत्तुपर्णि" अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त तिरुत्तक्कदेव लिखित "जीवक चिंतामणि" तमिल महाकाव्यों में अन्यतम माना जाता है। इस काल के सबसे बड़े कवि कंबन थे। इन्होंने तमिल "रामायण" की रचना कुलोत्तुंग तृतीय के शासनकाल में की। इसके अतिरिक्त व्याकरण, कोष, काव्यशास्त्र तथा छंद आदि विषयों पर बहुत से महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना भी इस समय हुई।


सांस्कृतिक स्थिति[संपादित करें]
चोल साम्राज्य की शक्ति बढ़ने के साथ ही सम्राट् के गौरव ओर ऐश्वर्य के भव्य प्रदर्शन के कार्य बढ़ गए थे। राजभवन, उसमें सेवकों का प्रबंध ओर दरबार में उत्सवों और अनुष्ठानों में यह प्रवृत्ति परिलक्षित होती है। सम्राट् अपने जीवनकाल ही में युवराज को शासनप्रबंध में अपने साथ संबंधित कर लेता था। सम्राट के पास उसकी मौखिक आज्ञा के लिए भी विषय एक सुनिश्चित प्रणाली के द्वारा आता था, एक सुनिश्चित विधि में ही वह कार्य रूप में परिणत होता था। राजा को परामर्श देने के लिए विभिन्न प्रमुख विभागों के कर्मचारियों का एक दल, जिसे उडनकूट्टम् कहते थे। सम्राट् के निरंतर संपर्क में रहता था। सम्राट् के निकट संपर्क में अधिकारियों का एक संगठित विभाग था जिसे ओलै कहते थे1 चोल साम्राज्य में नौकरशाही सुसंगठित और विकसित थी जिसमें अधिकारियों के उच्च (पेरुंदनम्) और निम्न (शिरुदनम्) दो वर्ग थे। केंद्रीय विभाग की ओर से स्थानीय अधिकारियों का निरीक्षण और नियंत्रण करने के लिए कणकाणि नाम के अधिकारी होते थेे। शासन के लिए राज्य वलनाडु अथवा मंडलम्, नाडु और कूर्रम् में विभाजित था। संपूर्ण भूमि नापी हुई थी और करदायी तथा करमुक्त भूमि में बँटी थी। करदायी भूमि के भी स्वाभाविक उत्पादनशक्ति और फसल के अनुसार, कई स्तर थे। कर के लिए संपूर्ण ग्राम उत्तरदायी था। कभी-कभी कर एकत्रित करने में कठोरता की जाती थी। भूमिकर के अतिरिक्त चुंगी, व्यवसायों और मकानों तथा विशेष अवसरों और उत्सवों पर भी कर थे। सेना अनेक सैन्य दलों में बँटी थी जिनमें से कई के विशिष्ट नामों का उल्लेख अभिलेखों में मिलता है। सेना राज्य के विभिन्न भागों में शिविर (कडगम) के रूप में फैली थी। दक्षिण-पूर्वी एशिया में चोलों की विजय उनके जहाजी बेड़े के संगठन और शक्ति का स्पष्ट प्रमाण है। न्याय के लिए गाँव और जाति की सभाओं के अतिरिक्त राज्य द्वारा स्थापित अदालतें भी थीं। निर्णय सामाजिक व्यवस्थाओं, लेखपत्र और साक्षी के प्रमाण के आधार पर होते थे। मानवीय साक्ष्यों के अभाव में दिव्यों का भी सहारा लिया जाता था।

चोल शासन की प्रमुख विशेषता सुसंगठित नौकरशाही के साथ उच्च कोटि की कुशलतावली स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं का सुंदर और सफल सामंजस्य है। स्थानीय जीवन के विभिन्न अंगों के लिए विविध सामूहिक संस्थाएँ थीं जो परस्पर सहयोग से कार्य करती थीं। नगरम् उन स्थानों की सभाएँ थीं जहाँ व्यापारी वर्ग प्रमुख था। ऊर गँव के उन सभी व्यक्तियों की सभा थी जिनके पास भूमि थी। सभा ब्रह्मदेय गाँवों के ब्राह्मणों की सामूहिक संस्था का विशिष्ट नाम था। राज्य की ओर से साधारण नियंत्रण और समय पर आयव्यय के निरीक्षण के अतिरिक्त इन सभाओं को पूर्ण स्वतंत्रता थी। इनके कार्यों के संचालन के लिए अत्यंत कुशल और संविधान के नियमों की दृष्टि से संगठित और विकसित समितियों की व्यवस्था थी जिन्हें वारियम् कहते थे। उत्तरमेरूर की सभा ने परांतक प्रथम के शासनकाल में अल्प समय के अंतर पर ही दो बार अपने संविधान में परिवर्तन किए जो इस बात का प्रमाण है कि ये सभाएँ अनुभव के अनुसार अधिक कुशल व्यवस्था को अपनाने के लिये तत्पर रहती थीं। इन सभाओं के कर्तव्यों का क्षेत्र व्यापक और विस्तृत था।

चोल नरेशों ने सिंचाई की सुविधा के लिए कुएँ और तालाब खुदवाए और नदियों के प्रवाह को रोककर पत्थर के बाँध से घिरे जलाशय (डैम) बनवाए। करिकाल चोल ने कावेरी नदी पर बाँध बनवाया था। राजेंद्र प्रथम ने गंगैकोंड-चोलपुरम् के समीप एक झील खुदवाई जिसका बाँध 16 मील लंबा था। इसको दो नदियों के जल से भरने की व्यवस्था की गई और सिंचाई के लिए इसका उपयोग करने के लिए पत्थर की प्रणालियाँ और नहरें बनाई गईं। आवागमन की सुविधा के लिए प्रशस्त राजपथ और नदियों पर घाट भी निर्मित हुए।

सामाजिक जीवन में यद्यपि ब्राह्मणों को अधिक अधिकार प्राप्त थे और अन्य वर्गों से अपना पार्थक्य दिखलाने के लिए उन्होंने अपनी अलग बस्तियाँ बसानी शु डिग्री कर दी थीं, फिर ना विभिन्न वर्गों के परस्पर संबंध कटु नहीं थे। सामाजिक व्यवस्था को धर्मशास्त्रों के आदेशों और आदर्शों के अनुकूल रखने का प्रयन्त होता था। कुलोत्तुंग प्रथम के शासनकाल में एक गाँव के भट्टों ने शास्त्रों का अध्ययन कर रथकार नाम की अनुलोम जाति के लिए सम्मत जीविकाओं का निर्देश किया। उद्योग और व्यवसाय में लगे सामाजिक वर्ग दो भागों में विभक्त थे- वलंगै और इडंगै। स्त्रियाँ पर सामाजिक जीवन में किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं था। वे संपत्ति की स्वामिनी होती थीं। उच्च वर्ग के पुरुष बहुविवाह करते थे। सती का प्रचार था। मंदिरों में गुणशीला देवदासियाँ रह करती थीं। समाज में दासप्रथा प्रचलित थी। दासों की कई कोटियाँ होती थीं।

आर्थिक जीवन का आधार कृषि थी। भूमिका स्वामित्व समाज में सम्मान की बात थी। कृषि के साथ ही पशुपालन का व्यवसाय भी समुन्नत था। स्वर्णकार, धातुकार और जुलाहों की कला उन्नत दशा में थी। व्यापारियों की अनेक श्रेणियाँ थीं जिनका संगठन विस्तृत क्षेत्र में कार्य करता था। नानादेश-तिशैयायिरत्तु ऐज्जूरुंवर व्यापारियों की एक विशाल श्रेणी थी जो वर्मा और सुमात्रा तक व्यापार करती थी।

चोल सम्राट शिव के उपासक थे लेकि उनकी नीति धार्मिक सहिष्णुता की थी। उन्होंने बौद्धों को भी दान दिया। जैन भी शांतिपूर्वक अपने धर्म का पालन और प्रचार करते थे। पूर्वयुग के तमिल धार्मिक पद्य वेदों जैसे पूजित होने लगे और उनके रचयिता देवता स्वरूप माने जाने लगे। नंबि आंडार नंबि ने सर्वप्रथम राजराज प्रथम के राज्यकाल में शैव धर्मग्रंथों को संकलित किया। वैष्णव धर्म के लिए यही कार्य नाथमुनि ने किया। उन्होंने भक्ति के मार्ग का दार्शनिक समर्थन प्रस्तुत किया। उनके पौत्र आलवंदार अथवा यामुनाचार्य का वैष्णव आचार्यों में महत्वपूर्ण स्थान है (दे. "यामुनाचार्य")। रामानुज ने विशिष्टाद्वैत दर्शन का प्रतिपादन किया मंदिरों की पूजा विधि में सुधार किया और कुछ मंदिरों में वर्ष में एक दिन अंत्यजों के प्रवेश की भी व्यवस्था की। शैवों में भक्तिमार्ग के अतिरिक्त बीभत्स आचारोंवाले कुछ संप्रदाय, पाशुपत, कापालिक और कालामुख जैसे थे, जिनमें से कुछ स्त्रीत्व की आराधना करते थे, जो प्राय: विकृत रूप ले लेती थी। देवी के उपासकों में अपना सिर काटकर चढ़ाने की भी प्रथा थी। इस युग के धार्मिक जीवन में मंदिरों का विशेष महत्व था। छोटे या बड़े मंदिर, चोल राज्य के प्राय: सभी नगरों और गाँवों में इस युग में बने। ये मंदिर, शिक्षा के केंद्र भी थे। त्योहारों और उत्सवों पर इनमें गान, नृत्य, नाट्य और मनोरंजन के आयोजन भी होते थे। मंदिरों के स्वामित्व में भूमि भी होती थी और कई कर्मचारी इनकी अधीनता में होते थे। ये बैंक का कार्य थे। कई उद्योगों और शिल्पों के व्यक्तियों को मंदिरों के कारण जीविका मिलती थी।

चोलों के मंदिरों की विशेषता उनके विमानों और प्रांगणों में दिखलाई पड़ती है। इनके शिखरस्तंभ छोटे होते हैं, किंतु गोपुरम् पर अत्यधिक अलंकरण होता है। प्रारंभिक चोल मंदिर साधारण योजना की कृतियाँ हैं लेकिन साम्राज्य की शक्ति और साधनों की वृद्धि के साथ मंदिरों के आकार और प्रभाव में भी परिवर्तन हुआ। इन मंदिरों में सबसे अधिक प्रसिद्ध और प्रभावोत्पादक राजराज प्रथम द्वारा तंजोर में निर्मित राजराजेश्वर मंदिर, राजेंद्र प्रथम द्वारा गंगैकोंडचोलपुरम् में निर्मित गंगैकोंडचोलेश्वर मंदिर है। चोल युग अपनी कांस्य प्रतिमाओं की सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है। इनमें नटराज की मूर्तियाँ सर्वात्कृष्ट हैं। इसके अतिरिक्त शिव के दूसरे कई रूप, ब्रह्मा, सप्तमातृका, लक्ष्मी तथा भूदेवी के साथ विष्णु, अपने अनुचरों के साथ राम और सीता, शैव संत और कालियदमन करते हुए कृष्ण की मूर्तियाँ भी उल्लेखनीय हैं।

तमिल साहित्य के इतिहास में चोल शासनकाल को स्वर्ण युग की संज्ञा दी जाती है। प्रबंध साहित्यरचना का प्रमुख रूप था। दर्शन में शैव सिद्धांत के शास्त्रीय विवेचन का आरंभ हुआ। शेक्किलार का तिरुत्तोंडर् पुराणम् या पेरियपुराणम् युगांतरकारी रचना है। वैष्णव भक्ति-साहित्य और टीकाओं की भी रचना हुई। आश्चर्य है कि वैष्णव आचार्य नाथमुनि, यामुनाचार्य और रामानुज ने प्राय: संस्कृत में ही रचनाएँ की हैं। टीकाकारों ने भी संस्कृत शब्दों में आक्रांत मणिप्रवाल शैली अपनाई। रामानुज की प्रशंसा में सौ पदों की रचना रामानुजनूर्रदादि इस दृष्टि से प्रमुख अपवाद है। जैन और बौद्ध साहित्य की प्रगति भी उल्लेखनीय थी। जैन कवि तिरुत्तक्कदेवर् ने प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य जीवकचिंतामणि की रचना 10वीं शताब्दी में की थी। तोलामोलि रचित सूलामणि की गणना तमिल के पाँच लघु काव्यों में होती है। कल्लाडनार के कल्लाडम् में प्रेम की विभिन्न मनोदशाओं पर सौ पद हैं। राजकवि जयन्गोंडा ने कलिंगत्तुप्परणि में कुलोत्तुंग प्रथम के कलिंगयुद्ध का वर्णन किया है। ओट्टकूत्तन भी राजकवि था जिसकी अनेक कृतियों में कुलोत्तुंग द्वितीय के बाल्यकाल पर एक पिल्लैत्तामिल और तीन चोल राजाओं पर उला उल्लेखनीय हैं। प्रसिद्ध तमिल रामायणम् अथवा रामावतारम् की रचना कंबन् ने कुलोत्तुंग तृतीय के राज्यकाल में की थी। किसी अज्ञात कवि की सुंदर कृति कुलोत्तुंगन्कोवै में कुलोत्तंुग द्वितीय के प्रारंभिक कृत्यों का वर्णन है। जैन विद्वान् अमितसागर ने छंदशास्त्र पर याप्परुंगलम् नाम के एक ग्रंथ और उसके एक संक्षिप्त रूप (कारिगै) की रचना की। बौद्ध बुद्धमित्र ने तमिल व्याकरण पर वीरशोलियम् नाम का ग्रंथ लिखा। दंडियलंगारम् का लेखक अज्ञात है; यह ग्रंथ दंडिन के काव्यादर्श के आदर्श पर रचा गया है। इस काल के कुछ अन्य व्याकरण ग्रंथ हैं- गुणवीर पंडित का नेमिनादम् और वच्चणंदिमालै, पवणंदि का नन्नूल तथा ऐयनारिदनार का पुरप्पोरलवेण्बामालै। पिंगलम् नाम का कोश भी इसी काल की कृति है।

चोलवंश के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि चोल नरेशों ने संस्कृत साहित्य और भाषा के अध्ययन के लिए विद्यालय (ब्रह्मपुरी, घटिका) स्थापित किए और उनकी व्यवस्था के लिए समुचित दान दिए। किंतु संस्कृत साहितय में, सृजन की दृष्टि से, चोलों का शासनकाल अत्यल्प महत्व का है। उनके कुछ अभिलेख, जो संस्कृत में हैं, शैली में तमिल अभिलेखों से नीचे हैं। फिर भी वेंकट माधव का ऋग्वेद पर प्रसिद्ध भाष्य परांतक प्रथम के राज्यकाल क रचना है। केशवस्वामिन् ने नानार्थार्णवसंक्षेप नामक कोश को राजराज द्वितीय की आज्ञा पर ही बनाया था।

वंशावली[संपादित करें]
विजयालय चोल 848-871(?)
आदित्य १ 871-907 -
परन्तक चोल १ 907-950
गंधरादित्य 950-957
अरिंजय चोल 956-957
सुन्दर चोल 957-970
उत्तम चोल 970-985
राजाराज चोल १ 985-1014
राजेन्द्र चोल १ 1012-1044
राजाधिराज चोल १ 1018-1054
राजेन्द्र चोल २ 1051-1063
वीरराजेन्द्र चोल 1063-1070
अधिराजेन्द्र चोल 1067-1070
चालुक्य चोल
कुलोतुंग चोल १ 1070-1120
कुलोतुंग चोल २ 1133-1150
राजाराज चोल २ 1146-1163
राजाधिराज चोल २ 1163-1178
कुलोतुंग चोल ३ 1178-1218
राजाराज चोल ३ 1216-1256
राजेन्द्र चोल ३ 1246-1279





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Wednesday, February 24, 2016

List of Council of Ministers in Modi's cabinet

List of Council of Ministers in Modi's cabinet



CABINET MINISTERS
Rajnath Singh: Home Affairs
Sushma Swaraj: External Affairs, Overseas Indian Affairs
Arun Jaitley Finance, Corporate Affairs, Information & Broadcasting
M. Venkaiah Naidu: Urban Development, Housing and Urban Poverty Alleviation, Parliamentary Affairs
Nitin Gadkari: Road Transport and Highways, Shipping
Manohar Parrikar: Defence
Suresh Prabhu: Railways
D.V. Sadananda Gowda: Law & Justice
Uma Bharati: Water Resources, River Development and Ganga Rejuvenation
Dr. Najma A. Heptulla: Minority Affairs
Ramvilas Paswan: Consumer Affairs, Food and Public Distribution
Kalraj Mishra: Micro, Small and Medium Enterprises
Maneka Gandhi: Women and Child Development
Ananthkumar: Chemicals and Fertilizers
Ravi Shankar Prasad: Communications and Information Technology
Jagat Prakash Nadda: Health & Family Welfare
Ashok Gajapathi Raju: Civil Aviation
Anant Geete: Heavy Industries and Public Enterprises
Harsimrat Kaur Badal: Food Processing Industries
Narendra Singh Tomar: Mines, Steel
Chaudhary Birender Singh: Rural Development, Panchayati Raj, Drinking Water and Sanitation
Jual Oram: Tribal Affairs
Radha Mohan Singh: Agriculture
Thaawar Chand Gehlot: Social Justice and Empowerment
Smriti Irani: Human Resource Development
Dr. Harsh Vardhan: Science and Technology, Earth Sciences
MINISTERS OF STATE (Independent Charge)
General V.K. Singh: Statistics and Programme Implementation (Independent Charge), External Affairs, Overseas Indian Affairs
Inderjit Singh Rao: Planning (Independent Charge), Defence
Santosh Kumar Gangwar: Textiles (Independent Charge)
Bandaru Dattatreya: Labour and Employment (Independent Charge)
Rajiv Pratap Rudy: Skill Development & Entrepreneurship (Independent Charge), Parliamentary Affairs
Shripad Yesso Naik: AAYUSH (Independent Charge), Health & Family Welfare
Dharmendra Pradhan: Petroleum and Natural Gas (Independent Charge)
Sarbananda Sonowal: Youth Affairs and Sports (Independent Charge)
Prakash Javadekar: Environment, Forest and Climate Change (Independent Charge)
Piyush Goyal: Power (Independent Charge), Coal (Independent Charge), New and Renewable Energy (Independent Charge)
Jitendra Singh: Development of North Eastern Region (Independent Charge), Prime Minister’s Office, Personnel, Public Grievances & Pensions, Department of Atomic Energy, Department of Space
Nirmala Sitharaman: Commerce and Industry (Independent Charge)
Dr. Mahesh Sharma: Culture (Independent Charge), Tourism (Independent Charge), Civil Aviation
MINISTERS OF STATE
Mukhtar Abbas Naqvi: Minority Affairs, Parliamentary Affairs
Ram Kripal Yadav: Drinking Water & Sanitation
Haribhai Parthibhai Chaudhary: Home Affairs
Sanwar Lal Jat: Water Resources, River Development & Ganga Rejuvenation
Mohanbhai Kalyanjibhai Kundariya: Agriculture
Giriraj Singh: Micro, Small & Medium Enterprises
Hansraj Gangaram Ahir: Chemicals & Fertilizers
G.M. Siddeshwara: Heavy Industries & Public Enterprises
Manoj Sinha: Railways
Nihalchand: Panchayati Raj
Upendra Kushwaha: Human Resource Development
Radhakrishnan P.: Road Transport & Highways, Shipping
Kiren Rijiju: Home Affairs
Krishan Pal: Social Justice & Empowerment
Dr. Sanjeev Kumar Balyan: Agriculture
Manuskhbhai Dhanjibhai Vasava: Tribal Affairs
Raosaheb Dadarao Danve: Consumer Affairs, Food and Public Distribution
Vishnu Deo Sai: Mines, Steel
Sudarshan Bhagat: Rural Development
Prof. (Dr.) Ram Shankar Katheria: Human Resource Development
Y.S. Chowdary: Science and Technology, Earth Science
Jayant Sinha: Finance
Col. Rajyavardhan Singh Rathore: Information & Broadcasting
Babul Supriyo: Urban Development, Housing and Urban Poverty Alleviation
Sadhvi Niranjan Jyoti: Food Processing Industries
Vijay Sampla: Social Justice & Empowerment


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Tuesday, February 23, 2016

Uttar Pradesh Public Service Commission (Held on April 26, 2015) Review Officer/ Assistant Review Officer Exam 2014

Uttar Pradesh Public Service Commission (Held on April 26, 2015)
Review Officer/ Assistant Review Officer Exam 2014
General Studies (Paper-I) Solved Paper

1. ‘Stockholm Water Prize, 2015’ winner Rajendra Singh is associated with which NGO?
(a) Bandhan (b) Tarun Bharat Sangh (c) Save Water (d) Boond (Ans : b)

2. The Seventh Asian Ministerial Conference, on Disaster Risk Reduction to be held in 2016 will be hosted by–
(a) Pakistan (b) Thailand (c) Myanmar (d) India (Ans : d)

3. The First Counter-Terrorism Conference, 2015, organised by India Foundation in association with Sardar Patel University of Police, Security and Criminal Justice, was held in–
(a) Jaipur (b) Jodhpur (c) Udaipur (d) Rawatbhata (Ans : a)

4. 40% of 50% of 2/5 of 2000 will be–
(a) 400 (b) 360 (c) 200 (d) 160 (Ans : d)

5. The greatest fraction among 9/13, 17/26, 28/39 and 33/52 is–
(a) 9/13 (b) 17/26 (c) 28/39 (d) 33/52 (Ans : c)

6. Which one of the following sets is different from others?
(a) 3, 11, 13, 17 (b) 7, 14, 18, 37 (c) 3, 5, 41, 47 (d) 3, 7, 17, 71 (Ans : b)

7. A prime number between 10 and 50 remains unchanged if its digits are reversed. Then the square of such a number is–
(a) 121 (b) 484 (c) 1089 (d) 1936 (Ans : a)

8. The missing letter in the letter arrangement ARENIJM? is–
(a) V (b) H (c) G (d) F (Ans : d)

9. In the word ‘MATHEMATICS’, if M is replaced by P, A by D, T by W and soon, then in the new arrangement of the letters, the letter of the 9th place is–
(a) K (b) L (c) F (d) W (Ans : b)

10. The number at the question mark (?) in the box
5
7
9
9
6
4
36
36
?
is–
(a) 40 (b) 32 (c) 36 (d) 42 (Ans : b)

11. The sum of the natural numbers which are divisors of –100, is–
(a) 116 (b) 117 (c) 216 (d) 217 (Ans : d)

12. Interchanging + and » and also the numbers 2 and 5, find the value of 8 + 4 × 5 » 2 – 3
(a) 2 (b) 4 (c) 6 (d) 8 (Ans : c)

13. Ram walks 4 km North-West and then 3 km South-West. How far is he from his starting point?
(a) 12 km (b) 7 km (c) 6 km (d) 5 km (Ans : d)

14. The next term in the sequence XBZ, VDY, TFX, RHW, ? is–
(a) PLT (b) PJV (c) PJT (d) PLV (Ans : b)

15. By changing one letter at a time, in how many minimum steps, the work ‘LOCK’ can be changed to ‘BANK’? Each change should result in a meaningful word.
(a) 6 (b) 5 (c) 4 (d) 3 (Ans : d)

16. If in a rectangular field, the length is increased by 50% and breadth by 20%, its area will become–
(a) 5/9 times (b) 5/3 times (c) 9/5 times (d) 3 times (Ans : c)

17. If looking at a mirror the time in a clock appears to be 30 minutes past 9, then the actual time is–
(a) 2 : 30 (b) 4 : 30 (c) 6 : 30 (d) 6 : 10 (Ans : a)

18. What is the missing number in the following box?
5          17        9
3          21        7
7          16        8
6          10        ?
(a) 10 (b) 12 (c) 15 (d) 16 (Ans : c)

19. If the average of 5, 10, 15 and X is 20, what is the value of X?
(a) 20 (b) 25 (c) 45 (d) 50 (Ans : d)

20. Which one amongst the following States has declared ‘house sparrow’ as its State bird?
(a) Haryana (b) Punjab (c) Delhi (d) Rajasthan (Ans : c)

21. Famous personality Yusuf Ali Kechery, who passed away, was a famous–
(a) Telugu poet (b) Urdu poet (c) Malayalam poet (d) Marathi poet (Ans : c)

22. The book Indian Parliamentary Diplomacy-Speaker’s Perspective has been written by–
(a) Meira Kumar (b) Sumitra Mahajan (c) BS Shekhawat (d) Somnath Chatterjee (Ans : a)

23. Famous personality ‘Lia van Leer’ has passed away recently. She was–
(a) the pioneer of Italian cinema (b) the pioneer of Israeli cinema
(c) the pioneer of American cinema (d) a photographer (Ans : b)

24. Who has written the book Shree Ramayana Mahanveshanam?
(a) PK Verma (b) Vinod Mehta (c) Shashi Tharoor (d) M. Veerappa Moily (Ans : d)

25. What is a ‘Solar Impulse 2’?
(a) Solar-powered mobile phone (b) Solar-powered missile
(c) Solar-powered submarine (d) Solar-powered plane (Ans : d)

26. Which State has launched ‘Bhagyashree’ scheme for. girl child?
(a) Delhi (b) Punjab (c) Maharashtra (d) Haryana (Ans : c)

27. ‘Jan Rath’ is a name given–
(a) for expanding rural communication in Uttar Pradesh
(b) for boosting transportation facilities in the country
(c) by Indian government to initiate bus service between India and Bangladesh
(d) to low-cost AC bus service started by Uttar Pradesh government (Ans : d)

28. Which of the following statements is incorrect for 2013?
(a) The birthrate (per 1000 population) in Uttar Pradesh was less than the birthrate in India.
(b) The birthrate (per 1000 population) Uttar Pradesh was more than the ‘birthrate in India.
(c) The birthrate in Uttar Pradesh was more than 25.
(d) The birthrate in Uttar Pradesh was less than 30. (Ans : a)

29. Uttar Pradesh government has recently decided to celebrate 2015-16 as–
(a) Yuva Year (b) Mahila Suraksha Year (c) Kisan Year (d) Environmental Conservation Year (Ans : c)

30. In the Census of 2011, the highest literacy rate was in which district of Uttar Pradesh?
(a) Ghaziabad (b) Mahoba (c) Kanpur (d) Varanasi (Ans : c)

31. The largest share of revenue of Uttar Pradesh government comes from–
(a) registration fees (b) trade tax (c) land revenue (d) share of Union excise duty (Ans : b)

32. In Uttar Pradesh, the ‘Knowledge Park’ is being set-up at–
(a) Varanasi (b) Noida (c) Lucknow (d) Greater Noida (Ans : d)

33. The logo of ‘Make in India’ programme is–
(a) Lion (b) Elephant (c) Panther (d) Kangaroo (Ans : a)

34. Which one of the following groups of compounds is called ‘accessory dietary factor’?
(a) Fats (b) Hormones (c) Proteins (d) Vitamins (Ans : d)

35. Which’ one of the following is biodegradable?
(a) Plastic (b) Polythene (c) Mercury (d) Rubber (Ans : d)

36. Which one of the following gases is responsible for decrement in ozone layer?
(a) Nitrous oxide (b) Chlorofluorocarbon (c) Carbon dioxide (d) Carbon monoxide (Ans : b)

37. The gas used for inflating the tyres of aeroplanes, is–
(a) hydrogen (b) helium (c) nitrogen (d) neon (Ans : c)

38. An essential constituent of diet, is–
(a) starch (b) glucose (c) carbohydrate (d) cellulose (Ans : c)

39. ‘Red ink’ is prepared from–
(a) phenol (b) aniline (c) Congo red (d) eosin (Ans : d)

40. The compound associated with Bhopal Gas Tragedy was–
(a) methyl alcohol (b) phosphazene (c) methyl isocyanate (d) methylamine (Ans : c)

41. The chemical used as fixer in the photography is–
(a) sodium thiosulphate (b) borax (c) sodium tetrathionate (d) ammonium molybdate (Ans : a)

42. Percentagewise which gas is the most abundant in the atmosphere?
(a) Nitrogen (b) Oxygen (c) Hydrogen (d) Carbon dioxide (Ans : a)

43. Which one of the following proteins is present in human hair and nails?
(a) Oxytocin (b) Keratin (c) Vasopressin (d) Trypsin (Ans : b)

44. Which one of the following salts should not be used as dining table salt?
(a) Iodised salt (b) Sea salt (c) Rock salt (d) Processed common salt (Ans : c)

45. Natural camphor is obtained from–
(a) high altitude rocks of Himalayan mountains (b) foams of Angle Falls in Venezuela
(c) a tree native to China and Japan (d) sediments of tides of sea near Andaman (Ans : c)

46. Cow milk is yellowish white-in colour due to the presence of–
(a) casein (b) lactose (c) carotene together with casein (d) butyric acid together with lactose (Ans : a)

47. Consider the following statements–
Assertion (A) During sleep, bright light is undesirable.
Reason (R) In bright light, production of melatonin in the body is considerably increased.
Select your answer using the codes given below:
(a) Both (A) and (R) are correct, and (R) is the correct explanation of (A).
(b) Both (A) and (R) are correct, but (R) is not the correct explanation of (A).
(c) (A) is true but (R) is false.
(d) (A) is false but (R) is true. (Ans : b)

48. Who among the following was given the title of ‘Shah Buland Iqbal’ by Shahjahan?
(a) Dara Shikoh (b) Shuja (c) Aurangzeb (d) Murad (Ans : a)

49. Who were the ‘Nayanars’?
(a) Vaishnavites (b) Shaivites (c) Shaktas (d) Sun worshippers (Ans : b)

50. ‘Saptaparni Cave’ is situated in–
(a) Sanchi (b) Nalanda (c) Rajgriha (d) Pavapuri (Ans : c)

51. ‘Dwarasamudra’ was the capital of which dynastic power?
(a) Ganga (b) Kakatiya (c) Hoysala (d) Kadamba (Ans : c)

52. ‘Gopatha Brahmana’ is associated with–
(a) Yajurveda (b) Samveda (c) Atharvaveda (d) Rigveda (Ans : c)

53. Originally, the Mahabharata was known as–
(a) Brihatkatha (b) Brahmanas (c) Brihatsamhita (d) Jayasamhita (Ans : d)

54. From which inscription it is known that Skandagupta defeated Hunas?
(a) Bhitari pillar inscription (b) Allahabad pillar inscription
(c) Mandsaur inscription (d) Udayagiri inscription (Ans : a)

55. Vallabhi University was situated in–
(a) Bihar (b) Uttar Pradesh (c) Bengal (d) Gujarat (Ans : d)

56. Which of the following works were authored by Harsha?
1. Priyadarshika 2. Nagananda 3. Harshacharita 4. Ratanavali
Select your answer using the codes given below:
(a) 1, 2, 3 and 4 (b) 1, 2 and 4 (c) 1, 2 and 3 (d) 2 and 3 (Ans : b)

57. The largest and the most evolved rock-cut Chaitya hall of the Hinayana phase is situated at–
(a) Pitalkhora (b) Junnar (c) Karle (d) Bedsa (Ans : c)

58. In whose Viceroyalty, the ‘Rowlatt Act’ was passed?
(a) Lord Hardinge II (b) Lord Reading (c) Lord Chelmsford (d) Lord Minto II (Ans : c)

59. The Indian Independence Act, 1947 came into force on–
(a) July 4, 1947 (b) July 10, 1947 (c) July 18, 1947 (d) August 17, 1947 (Ans : c)

60. Boycott of British goods was adopted as a national policy in–
(a) 1899 (b) 1901 (c) 1903 (d) 1905 (Ans : d)

61. The strategy of ‘Divide and Rule’ was adopted by–
(a) Lord Curzon (b) Lord Minto (c) Lord Dalhousie (d) Lord Wellesley (Ans : a)

62. The headquarters of the Ghadar Party was in–
(a) San Francisco (b) New York (c) Madras (d) Calcutta (Ans : a)

63. Who among the following was not an outstanding leader of Militant Nationalism?
(a) Gopal Krishna Gokhale (b) Bipin Chandra Pal (c) Lokmanya Tilak (d) Lala Lajpat Rai (Ans : a)

64. Who among the following is known by the title of ‘The Grand Old Man’?
(a) Khan Abdul Ghaffar Khan (b) WC Bannerjee (c) Dadabhai Naoroji (d) Motilal Nehru (Ans : c)

65. Who among the following was the President of tile Indian Constituent Assembly?
(a) Dr. Rajendra Prasad (b) Pt. Jawaharlal Nehru (c) Sardar Patel (d) Dr. BR Ambedkar (Ans : a)

66. When was newly adopted tricolour flag of freedom first hoisted?
(a) December 31, 1928 (b) December 31, 1929 (c) December 31, 1930 (d) December 31, 1931 (Ans : b)

67. In which State, the ‘Bhoodan Movement’ was first started?
(a) Andhra Pradesh (b) Karnataka (c) Tamil Nadu (d) Uttar Pradesh (Ans : a)

68. The Right of Equality is granted by five Articles in the Indian Constitution. These are–
(a) Articles 13-17 (b) Articles 14-18 (c) Articles 15-19 (d) Articles 16-20 (Ans : b)

69. The framers of the Constitution of India borrowed the concept of Fundamental Right from the–
(a) Constitution of USA (b) Constitution of Ireland (c) Constitution of Canada (d) Constitution of USSR (Ans : a)

70. The Sarkaria Commission was set-up for reviewing the relations between the–
(a) Prime Minister and President (b) Legislature and Executive
(c) Executive and Judiciary (d) Centre and States (Ans : d)
71. In which Part of the Constitution of India, relations between the Union and States have been mentioned? (a) Part X (b) Part XI (c) Part XIV (d) Part XV (Ans : b)

72. If the President and the Vice-President of India both have resigned, who will act as the President?
(a) Speaker of the Lok Sabha (b) Prime Minister
(c) Home Minister (d) Chief Justice of the Supreme Court (Ans : d)

73. Which of the following Directive Principles of State Policy was added to the Constitution at a later date?
(a) organisation of village panchayats (b) prohibition of cow slaughter
(c) free legal aid (d) uniform civil code (Ans : c)

74. ‘Judicial Activism’ in India is related to–
(a) committed judiciary (b) public interest petition
(c) judicial review (d) judicial independence (Ans : b)

75. In the Union Budget of 2015-16, which one of the following pension schemes has been reintroduced?
(a) Ram Manohar Lohia Pension Yojana (b) Pradhan Mantri Pension Yojana
(c) Atal Pension Yojana (d) Nirantar Pension Yojana (Ans : c)

76. In the Union Budget of 2015-16, the FDI limit of equity in case of insurance companies has been raised to–
(a) 49% (b) 76% (c) 81 % (d) 99% (Ans : a)

77. What is ‘Shadow Banking’?
(a) Outsourcing of banking work by a bank
(b) Financial transactions and other activities of non-banking financial intermediary
(c) Domestic banks’ foreign operations
(d) Foreign bank operating in another country for banking and other activities (Ans : b)

78. Which among the following are multinational corporations working in India?
1. Hindustan Lever Limited 2. Samsung Corporation
3. Guest Keen and Williams Pharam 4. LG
Select your answer using the codes given below:
(a) 1, 2, 3 and 4 (b) 2 and 4 (c) 2, 3 and 4 (d) 1 and 3 (Ans : a)

79. The density of population in India–
(a) has continuously increased (b) is approximately constant
(c) has mildly declined (d) has first increased and then declined since 1991 (Ans : a)

80. Which one of the following decades in Indian Planning deserves to be called ‘The Decade of Jobless Growth’?
(a) 1971-1980 (b) 1991-2000 (c) 2001-2010 (d) 2005-2015 (Ans : b)

81. The folk dance of Meghalaya is–
(a) Nati (b) Loho (c) Bamboo dance (d) Khantum (Ans : b)

82. Who was awarded Dadasaheb Phalke Award for the year 2014?
(a) Guizar (b) Shashi Kapoor (c) Pran (d) Lata Mangeshkar (Ans : b)

83. ‘Uttar Pradesh Council of Agricultural Research’ is located at–
(a) Meerut (b) Bulandshahar (c) Lucknow (d) Gorakhpur (Ans : c)

84. ‘Central Institute of Medicinal and Aromatic Plants’ is located at–
(a) Chitrakut (b) Saharanpur (c) Kanpur (d) Lucknow (Ans : d)

85. Potato Research Institute’ in Uttar Pradesh is located in the district–
(a) Farrukhabad (b) Meerut (c) Kanpur (d) Allahabad (Ans : b)

86. Which one of the following is the most productive soil in India?
(a) Red soil (b) Black soil (c) Alluvial soil (d) Calcareous soil (Ans : c)

87. Generally Orobanche weed is found in–
(a) tobacco field (b) gram field (c) rice field (d) wheat field (Ans : a)

88. The highest protein content is found in the grain of–
(a) black gram (b) pigeon pea (c) field pea (d) soyabean (Ans : d)

89. Which one of the following is not included in the working capital of a farm?
(a) Seed (b) Fertilizer (c) Irrigation water (d) Land revenue (Ans : c)

90. The proper seed rate for transplanting of Basmati rice is–
(a) 45-50 kg/ha (b) 20-30 kg/ha (c) 15-20 kg/ha (d) 5-10 kg/ha (Ans : b)

91. Devaluation of ‘Mudra’–
(a) increases the imports and exports of a country
(b) decreases the imports and exports of a country
(c) increases the exports and decreases the imports of a country
(d) increases the imports and decreases the exports of a country (Ans : c)

92. Which one of the following NBFCs has been granted license by the RBI to open commercial bank by March 31, 2015?
(a) Reliance Capital (b) Bajaj Capital (c) IDFC (d) IFCI (Ans : c)

93. Long-term fiscal policy was announced by which Finance Minister of India?
(a) VP Singh (b) P. Chidambaram (c) Dr. Manmohan Singh (d) Yashwant Sinha (Ans : a)

94. Which one of the following is a Direct tax?
(B) Sales tax (b) Excise duty (c) Customs duty (d) Wealth tax (Ans : d)

95. The RBI does not transact the business of which State government?
(a) Nagaland (b) Jammu and Kashmir (c) Punjab (d) Assam (Ans : b)

96. Income tax in India was introduced by–
(a) Sir Charles Wood (b) Lord MacHale (c) James Wilson (d) William Jones (Ans : c)

97. What is the maximum limit of gratuity payable under the Payment of Gratuity Act, 1972?
(a) Rs. 3 lakh (b) Rs. 7.50 lakh (c) Rs. 10 lakh (d) Rs. 10.50 lakh (Ans : c)

98. A ‘PAN’ has initially a five-alphabet series like AFZPK 7190 K. Here P stands for–
(a) individual (b) firm (c) Hindu undivided family (d) association of persons (Ans : a)

99. In 2011, micro-finance institutions were installed on the recommendation of–
(a) Malegam Committee (b) Goiporia Committee (c) Rangarajan Committee (d) Banking Reforms Committee (Ans : a)

100. Which one of the following is true for ‘Pradhan Mantri Jan-Dhan Yojana’?
Accident Insurance – Life Insurance
(a) Rs.100000 – Rs. 30000
(b) Rs.30000 – Rs. 100000
(c) Rs.30000 – Rs. 10000
(d) Rs.130000 – Rs. 100000 (Ans : a)

101. In India, the effective literacy rates are calculated from–
(a) total population (b) child population (c) adult population (d) population above 7 years of age (Ans : d)

102. Which of the following is an act that disturbs the ecological balance?
(a) Lumbering (b) Social forestry (c) Vanamahotsav (d) Afforestation (Ans : a)

103. ‘Humus’ is an example of–
(a) soil structure (b) crystalloids (c) organic colloids (d) None of the above (Ans : c)

104. Xeric condition refers to–
(a) low temperature (b) low humidity (c) high evaporation (d) extreme temperature (Ans : b)

105. ‘Ecology’ is the study of relationship between–
(a) organism and environment (b) man and forest (c) soil and water (d) husband and wife (Ans : a)

106. Soil erosion can be prevented’ by–
(a) heavy rains (b) deforestation (c) afforestation (d) overgrazing (Ans : c)

107. The boundary of Lucknow district does not touch the boundary of which of the following districts?
(a) Ballia (b) Unnao (c) Hardoi (d) Barabankl (Ans : a)

108. Which of the following factors is most effective in the increase of agricultural production in Uttar Pradesh?
(a) Increasing use of the high quality seeds (b) Development of agro-service centres
(c) Agro-credit facility (d) Kisan Credit Card Scheme (Ans : a)

109. As per the Census of 2011, what is the percentage of urban population’ in the total population of India?
(a) 31.8 % (b) 30.8 % (c) 32.2% (d) 31.2% (Ans : d)

110. Uttar Pradesh government has decided to have Metro Rail in various cities. Which of the following cities does not find place in the list?
(a) Kanpur (b) Allahabad (c) Agra (d) Varanasi (Ans : b)

111. Which State is the largest producer of coal in India?
(a) West Bengal (b) Odisha (c) Andhra Pradesh (d) Madhya Pradesh (Ans : b)

112. The second largest continent in the world (in terms of area) is–
(a) Asia (b) South America (c) North America (d) Africa (Ans : d)

113. In which State, the Aravalli ranges are located?
(a) Rajasthan (b) Himachal Pradesh (c) Odisha (d) Andhra Pradesh (Ans : a)

114. Which river forms its delta in Odisha?
(a) Godavari (b) Mahanadi (c) Narmada (d) Tapti (Ans : b)

115. Betwa river joins the–
(a) Ganga (b) Yamuna (c) Brahamaputra (d) Sane (Ans : b)

116. In which of the following continents, the tropical deciduous forests are most extensive?
(a) Africa (b) Asia (c) Australia (d) South America (Ans : b)

117. Mexico is the largest producer of–
(a) gold (b) copper (c) zinc (d) silver (Ans : d)

118. Which of the following cities is located on Lake Superior?
(a) Chicago (b) Buffalo (c) Detroit (d) Duluth (Ans : d)

119. Hajira-Bijapur-jagdishpur (HBJ) Gas Pipeline been constructed by which of the following authorities?
(a) Gas Authority of India Limited (b) Oil India Limited
(c) Indian Oil Company (d) Hindustan Petroleum Corporation Limited (Ans : a)

120. Which of the following States is not known for the production of cardamom?
(a) Kerala (b) Karnataka (c) Tamil Nadu (d) Odisha (Ans : d)

121. How many States in India are coastal?
(a) 7 (b) 8 (c) 9 (d)10 (Ans : c)

122. ‘Sargasso Sea’ is characterised by–
(a) very cold water (b) very warm water (c) highly saline water (d) typical marine vegetation (Ans : d)

123. Which of the following lakes is a world heritage site?
(a) Red Lagoon of Bolivia (b) Boiling Lake of Dominica
(c) Five Flower Lake of China (d) Plitvice Lake of Croatia (Ans : d)

124. Which one of the following States of India is the largest producer of coconut?
(a) Kerala (b) Karnataka (c) Tamil Nadu (d) Andhra Pradesh (Ans : b)

125. Mithi river of Mumbai originates from which of the following lakes?
(a) Tulsi Lake (b) Vihar Lake (c) Powai Lake (d) None of these (Ans : b)

126. The historic statue of Mahatma Gandhi has been unveiled at which country’s Parliament Square?
(a) Japan (b) The USA (c) Britain (d) France (Ans : c)

127. Which university has topped in Times World Reputation Rankings 2015’?
(a) Cambridge University (b) Oxford University
(c) Harward University (d) Stanford University (Ans : c)

128. ‘NAINA’ is a new city to be set-up around which of the following airports?
(a) Indira Gandhi International Airport (New Delhi) (b) Rajeev Gandhi International Airport (Hyderabad)
(c) Navi Mumbai International Airport (Mumbai) (d) None of the above (Ans : c)

129. According to the latest Supreme Court judgement on Armed Forces Tribunal (AFT), which of the following is true?
(a) High Courts cannot entertain writ petitions against verdict of AFT.
(b) High Courts can entertain writ. petitions against verdict of AFT.
(c) High Courts can entertain writ petitions against verdict of AFT concerning officials below the rank of Major only.
(d) None of the above (Ans : a)

130. North Central Zone Cultural Centre (NCZCC) would organise Chaite and Kajri centres in which city?
(a) Mirzapur (b) Bhojpur (c) Mathura (d) Varanasi (Ans : d)

131. The book ‘Lucknow Boy’ was written by–
(a) Kuldeep Nayar (b) Muzaffar Ali (c) Vinod Mehta (d) Noorul Hasan (Ans : c)

132. Which of the following National Parks has started to use drone or unmanned aerial vehicle for wildlife management?
(a) Bandipur Tiger Reserve (b) Corbett Tiger Reserve
(c) Ranthambore Tigre Reserve (d) Periyar Tiger Reserve (Ans : b)

133. Who amongst the following has been appointed as Editor-in-Chief of the Guardian newspaper?
(a) Cheryl Cole (b) Katharine Viner (c) Joya Vincent (d) Samantha Rice (Ans : b)

134. ‘Mithivirdi’ nuclear power plant will be set-up in collaboration with which of the following countries?
(a) The USA (b) Canada (c) Russia (d) France (Ans : a)

135. According-to the latest report, what is the rank of India in steel production in the world?
(a) 4th (b) 3rd (c) 2nd (d) 1st (Ans : b)

136. ‘Agenda-21’ is related to which field?
(a) Sustainable development (b) Nuclear disarmament
(c) Patent protection (d) Agricultural subsidies (Ans : a)

137. ‘Mission Indradhanush’ of the Union government is related to–
(a) pulse production (b) immunisation of children against seven vaccine-preventable diseases
(c) skill development (d) tourism promotion (Ans : b)

138. Prestigious ‘Tyler Prize’ is given in the field-of–
(a) drama (b) women rights (c) child rights (d) environmental protection (Ans : d)

139. According to recent judgement of the Supreme Court, Section-66A of IT Act is a violation of–
(a) Article-20 (b) Article-19 (1) (c) Article-14 (d) Article-25 (Ans : b)

140. How many of the recently approved 17 mega food parks for food processing have been allotted to State agencies?
(a) 7 (b) 10 (c) 11 (d) 13 (Ans : a)



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