Saturday, September 27, 2014

Answer Keys for CTET-SEPT 2014 Examination

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Answer Keys for CTET-SEPT 2014 Examination

CTET Answer Key 
Paper-I
Paper-I MainSET M
SET N
SET O
SET P
Punjabi LanguageSET M
SET N
SET O
SET P
Common Keys for 14 Languages
(Telegu,Bengali,Sanskrit,
Malayalam,Manipuri,Odia,
Gujarat,Urdu,Assamese,
Tibetan,Marathi,Khasi,
Garo,Mizo)
SET M
SET N
SET O
SET P
Paper-II
Paper-II MainSET Q
SET R
SET S
SET T
Punjabi LanguageSET Q
SET R
SET S
SET T
Common Keys for 14 Languages
(Telegu,Bengali,Sanskrit,
Malayalam,Manipuri,Odia,
Gujarat,Urdu,Assamese,
Tibetan,Marathi,Khasi,
Garo,Mizo)
SET Q
SET R
SET S
SET T

CTET Answer Key  सीटीईटी में 15 प्रश्नों के दो उत्तर 28




जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) अपने ही प्रश्नों में फंसता नजर आ रहा है। बोर्ड ने 21 सितम्बर को आयोजित किए केन्द्रीय अध्यापक पात्रता परीक्षा (सीटीईटी) की उत्तर कुंजी में खुद ही अपने आप को गलत ठहराते हुए एक ही प्रश्न के अलग-अलग सेट में अलग-अलग उत्तर दिखाया है। बोर्ड ने कुल 30 प्रश्नों में से 15 प्रश्नों के दो-दो उत्तर जारी कर दिए हैं।1रविवार 21 सितम्बर को देशभर के कई केन्द्रों में आयोजित हुई इस परीक्षा में 6.98 लाख परीक्षार्थी पंजीकृत थे। बोर्ड ने प्रश्नों के सही उत्तर गुरुवार को जारी किये। उत्तर कुंजी जारी होते ही छात्रों ने प्रश्नों के उत्तर से मिलान किया तो सीबीएसई की बड़ी गलतियों का खुलासा हो गया। बोर्ड ने एक ही प्रश्न को अलग-अलग सेट में अलग प्रश्न संख्या के रूप में दिया था और जब उत्तर कुंजी जारी हुई तो उन्हीं प्रश्नों के दो- दो उत्तर जारी कर दिए। इसके अलावा कई प्रश्नों के उत्तर भी गलत जारी कर दिया। बोर्ड ने प्रश्नपत्र के क्यू सेट में भाषा के द्वितीय प्रश्नपत्र के प्रश्न संख्या 123 में कस्य ध्वनि: श्रूयते पूछते हुए इसका उत्तर दूसरे विकल्प वंश्या को बताया है जबकि इसी प्रश्न को टी सेट में प्रश्न संख्या 138 में पूछते हुए इसका उत्तर भेर्या: बताया है। इसी तरह से क्यू सेट के प्रश्न संख्या 124, 125, 126, 127, 132, 133, 135, 140, 142, 143, 144, 145, 147, 148 व 149 पर भी छात्रों ने आपत्ति जाहिर की। छात्रों ने बोर्ड के रवैये पर भी आक्रोश जाहिर किया है। सीटीईटी के एक ही प्रश्नपत्र के आधे प्रश्नों पर उठ रही आपत्ति बोर्ड के कई और गलतियों का संकेत दे रही हैं। हालांकि समय कम होने के कारण छात्र भी असमंजस में पड़े हुए हैं कि वो कैसे सभी प्रश्नों के सही उत्तर जांच कर सामने ला सकें। 25 सितम्बर को अपरान्ह जारी हुए प्रश्नपत्रों की उत्तरकुंजी के आधार पर बोर्ड ने 26 सितम्बर तक ही आपत्ति दर्ज कराने का समय दिया है।

News Sabhaar : Jagran (27.09.14)


Tuesday, September 23, 2014

CTET 2014 answer key to be released

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CTET 2014 answer key to be released



 

 September 22, 2014 
Central Board of Secondary Education (CBSE) which conducted Central Teacher Eligibility Test (CTET) on 21st September 2014 at various centres across the country is expected to release the answer key in its official website soon.

Candidates who appeared for CTET 2014 may download the answer key soon after the release in the following official website at http://ctet.nic.in

To download the CTET 2014 answer key, candidates may follow the below steps:

Log on to the official website at http://ctet.nic.in

Find a way to answer key section.

Click the link titled as CTET 2014 answer key.

Answer key for the mentioned CTET 2014 will appear on the screen.

Candidates may take a printout of the published answer key.

CBSE earlier announced a recruitment notification for Teacher posts through online mode in the month of July/August. Eligible candidates were invited to apply for the mentioned posts and applications were accepted till 4th August 2014. CBSE has announced to upload CTET answer key 2014 in its official website within a short period.

Eligibility criteria for appearing in CTET for Classes I-V

Candidates should have Senior Secondary pass certificate with minimum 50% marks or should have 2- year Diploma in Elementary Education.

OR

Candidates should have Senior Secondary pass certificate with at least 50% marks or should have4- year Bachelor of Elementary Education (B.El.Ed).

Eligibility criteria for appearing in CTET for Classes VI-VIII

Candidates should have a graduation degree or 2-year Diploma in Elementary Education.

Candidates with minimum 50% marks in graduation or 1-year Bachelor in Education (B.Ed) may also apply.

Candidates with minimum 50% marks in Senior Secondary or 4- year Bachelor in Elementary Education (B.El.Ed) may also apply.

Based on the written exam held on 21st September 2014, answer key will be released on the official website. Candidates may check the answer key and make a rough judgement of their results. Discrepancies regarding the published answer key should be immediately notified before the stipulated date which will be announced along with the answer key. Late notification will not be accepted.

For more details candidates may visit the official website at http://ctet.nic.in

Thursday, September 11, 2014

Sunday, September 7, 2014

Sangya (Noun)

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Sangya (Noun)

संज्ञा की परिभाषा  - संज्ञा को 'नाम' भी  कहा जाता है .
किसी प्राणी , वस्तु , स्थान , भाव आदि का 'नाम' ही उसकी संज्ञा कही जाती है .
संज्ञा तीन प्रकार की होती है.
१. व्यक्तिवाचक संज्ञा - जो किसी व्यक्ति, स्थान या वस्तु का बोध कराती है, 
यथा - सीता, युमना, आगरा.
२. जातिवाचक संज्ञा  - जो संज्ञा किसी जाति का बोध कराती है 
यथा -नदी , पर्वत 
३. भाववाचक संज्ञा  - किसी भाव , गुण, दशा आदि का बोध कराने वाले शब्द
भाववाचक संज्ञा होते  है, 
यथा -मिठास , कालिमा, 

English:



Definition:


Nouns are also known as the 'names'. Thus, the name of any person, thing, place etc. is called Noun.

In Hindi, Nouns are of three types:

1. Proper Noun (व्यक्तिवाचक संज्ञा)
2. Common Noun (जातिवाचक संज्ञा)
3. Abstract Noun (भाववाचक संज्ञा)


1. Proper Noun: A Proper Noun is one which specifically refers to a Person, a Place or a Thing.

Example: Seeta (Name of a Person)
                 Yamuna (Name of a River)
                 Agra (Name of a Place)

2. Common Noun: A Common Noun is one which refers to the common name of a Person, a Place or a Thing.

Example: River
                 Mountain
                 City

3. Abstract Noun: An Abstract Noun is one which represent feeling, ideas and qualities,

Example: Sweetness,
                  Darkness
                  Honesty
                  Goodness


सर्वनाम

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सर्वनाम  

संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किये जाने वाले शब्द को सर्वनाम कहते हैं।     

यथा :- आप , तू , यह , वह , कुछ , कोई आदि  !

सर्वनाम के छह भेद होते हैं  !

1 - पुरुषवाचक सर्वनाम - जिस सर्वनाम का प्रयोग वक्ता अपने लिए एवं किसी अन्य के लिए करता है , वह 

पुरुषवाचक सर्वनाम होता है जैसे -आप कहाँ रहते हैं  !

इसके तीन भेद होते हैं  !

1 -  उत्तम  पुरुष - मैं  , हम 
2 -  मध्यम पुरुष -  तू ,  तुम , आप 
3 -  अन्य पुरुष -  वह , उसे , उन्हें 

2 - निजवाचक सर्वनाम - जिस सर्वनाम का प्रयोग कर्ता कारक स्वयं के लिए करता है 

यथा - मैं अपने आप चला जाऊँगा , खुद अपने - आदि !


3 -  निश्चयवाचक सर्वनाम - जिस सर्वनाम से किसी वस्तु या व्यक्ति अथवा पदार्थ के विषय में ठीक और निश्चित ज्ञान हो , 
      जैसे - यह मेज है !

4 - अनिश्चयवाचक सर्वनाम - वह सर्वनाम ,जो किसी निश्चित वस्तु या व्यक्ति का बोध नहीं कराए ,
     जैसे - कुछ काम करो आदि !

5 - प्रश्नवाचक सर्वनाम - जिस सर्वनाम का प्रयोग प्रश्न करने के लिए किया जाता है 

     जैसे - आपने क्या खाया है ?

6 - सम्बन्धवाचक सर्वनाम - जिस सर्वनाम से एक शब्द या वाक्य का दूसरे शब्द या वाक्य से सम्बन्ध जाना जाता है 

     जैसे - जो करेगा सो भरेगा , जो जागेगा सो पावेगा , जो सोवेगा सो खोवेगा !

कारक

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कारक 

जो किसी शब्द का क्रिया के  साथ सम्बन्ध बताए  वह कारक है !

कारक के आठ भेद हैं :-

जिनका विवरण इस  प्रकार है :-

 कारक                                                             कारक चिन्ह 

1. कर्ता                                                              ने 

2. कर्म                                                               को 

3. करण                                                             से , के द्वारा 

4. सम्प्रदान                                                        को , के लिए 

5. अपादान                                                         से (अलग करना )  

6. सम्बन्ध                                                         का , की , के 

7. अधिकरण                                                      में , पर 

8. सम्बोधन                                                        हे , अरे      

विशेषण

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विशेषण

जो किसी संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है उसे विशेषण कहते हैं। 

जैसे: मोटा आदमी, नीला आसमान आदि। 

विशेषण के चार भेद होते हैं: 

1. गुणवाचक विशेषण : जो शब्द किसी व्यक्ति या वस्तु  के गुण, दोष, रंग, आकार, अवस्था, स्तिथि, स्वभाव, दशा, दिशा, स्पर्श, गंध, स्वाद आदि का बोध कराये, गुणवाचक विशेषण कहलाते हैं, जैसे काला, गोरा, अच्छा, सुंदर, ख़राब, गीला , रोगी, छोटा, कठोर, कोमल ,  खट्टा , नमकीन, बिहारी, सुगन्धित आदि। 

2. परिमाणवाचक विशेषण: वह विशेषण जो अपने विशेष्यों की निश्चित या अनिश्चित मात्रा का बोध कराए। 
     इसके दो भेद होते हैं 
     1. निश्चित परिमाणवाचक विशेषण:- जहाँ नाप, तोल या माप निश्चित हो, जैसे एक किलो चीनी, दो मीटर कपडा। 
     2. अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण: :- जहाँ नाप, तोल या माप अनिश्चित हो जैसे थोड़ी चीनी, कुछ लकड़ी। 
3. संख्यावाचक विशेषण :- संख्या संबंधी विशेषता बताने वाले शब्दों को संख्यावाचक विशेषण कहते हैं।
     ये दो प्रकार के होते हैं:
     1. निश्चित संख्यावाचक विशेषण: जहाँ संख्या निश्चित हो, जैसे पांच लड़के, दो छात्र। 
     2. अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण: जहाँ संख्या अनिश्चित हो जैसे सैंकड़ों लोग, अनेक लडकियां।
4. सार्वनामिक विशेषण :- वे सर्वनाम शब्द जो संज्ञा शब्द से पहले आकर उसकी विशेषता बताते हैं, सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं, जैसे 
     कौन लोग आये हैं ?

क्रिया : CTET Study Material

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क्रिया :-

जिस शब्द से किसी कार्य का होना या करना समझा जाय , उसे क्रिया कहते हैं ! जैसे - खाना , पीना  , सोना , रहना , जाना आदि !

क्रिया के दो भेद हैं :- 

1- सकर्मक क्रिया :-  जो क्रिया कर्म के साथ आती है , उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं !
    जैसे - मोहन फल खाता है ! ( खाना क्रिया के साथ कर्म फल है  )


 2- अकर्मक क्रिया :-  अकर्मक क्रिया के साथ कर्म नहीं होता तथा उसका फल कर्ता पर पड़ता है !
     जैसे - राधा रोती है ! ( कर्म का अभाव है तथा रोती है क्रिया का फल राधा पर पड़ता है  )

-  रचना के आधार पर क्रिया के पाँच भेद है :-

1- सामान्य क्रिया :-वाक्य में केवल एक क्रिया का प्रयोग ! जैसे -  तुम चलो , मोहन पढ़ा  आदि !


2- संयुक्त क्रिया :-  दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनी क्रियाएँ संयुक्त क्रियाएँ होती है ! जैसे - गीता स्कूल चली गई आदि !

3- नामधातु क्रियाएँ :-  क्रिया को छोड़कर दुसरे शब्दों  ( संज्ञा , सर्वनाम , एवं  विशेषण  ) से जो धातु बनते है , उन्हें नामधातु क्रिया कहते है जैसे -  अपना - अपनाना , गरम - गरमाना  आदि !

4- प्रेरणार्थक क्रिया :-  कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी अन्य को करने की प्रेरणा देता है  जैसे - लिखवाया , पिलवाती आदि !

5- पूर्वकालिक क्रिया :-  जब कोई कर्ता एक क्रिया समाप्त करके दूसरी क्रिया करता है तब पहली क्रिया  ' पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है जैसे -  वे पढ़कर चले गये  ,  मैं नहाकर जाउँगा  आदि !

वचन:-

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वचन:-

संज्ञा अथवा अन्य विकारी शब्दों के जिस रूप में संख्या का  बोध हो , उसे वचन कहते हैं !

वचन के दो भेद होते हैं - 

1-  एकवचन :-  संज्ञा के जिस रूप से एक ही वस्तु , पदार्थ या प्राणी का बोध होता है , उसे एकवचन कहते हैं !
     जैसे -  लड़की , बेटी , घोड़ा , नदी आदि !

2-  बहुवचन :-  संज्ञा के जिस रूप से एक से अधिक वस्तुओं , पदार्थों या प्राणियों का बोध होता है , उसे बहुवचन कहते हैं !
     जैसे -  लड़कियाँ , बेटियाँ , घोड़े  , नदियाँ  आदि !

-  एकवचन से  बहुवचन बनाने के नियम इस प्रकार हैं -

1-   को एं कर देने से =    रात = रातें 

2-  अनुस्वारी  ( . ) लगाने से =    डिबिया =  डिबियां 

3-  यां जोड़ देने से =    रीति =  रीतियां 

4-  एं लगाने से =   माला =  मालाएं 

5-    को कर देने से =   बेटा =  बेटे

लिंग

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लिंग :-

संज्ञा के जिस रूप से किसी जाति  का बोध होता है ,उसे लिंग कहते हैं !

इसके दो भेद होते हैं :-

1-  पुल्लिंग :-  जिस संज्ञा शब्दों से पुरुष जाति का बोध होता है , उसे पुल्लिंग कहते हैं -  जैसे - बेटा , राजा  आदि !

2-  स्त्रीलिंग :-  जिन संज्ञा शब्दों से स्त्री जाति का  बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं -  जैसे -  बेटी , रानी आदि !

स्त्रीलिंग प्रत्यय -

पुल्लिंग शब्द को स्त्रीलिंग बनाने के लिए कुछ प्रत्ययों को शब्द में जोड़ा जाता है जिन्हें स्त्री प्रत्यय कहते हैं ! जैसे - 

1.   =   बड़ा - बड़ी , भला - भली 

2.  इनी =  योगी - योगिनी , कमल - कमलिनी 

3.  इन =   धोबी - धोबिन , तेली - तेलिन 

4.  नी =   मोर - मोरनी , चोर - चोरनी 

5.  आनी =  जेठ - जेठानी , देवर - देवरानी 

6.  आइन =   ठाकुर - ठकुराइन , पंडित - पंडिताइन 

7.  इया =   बेटा - बिटिया , लोटा - लुटिया 


कुछ शब्द अर्थ की द्रष्टि से समान होते हुए भी लिंग की द्रष्टि से भिन्न होते हैं ! उनका उचित प्रयोग करना चाहिए !जैसे -               

      पुल्लिंग                        स्त्रीलिंग 
                     
1.   कवि                            कवयित्री 

2.   विद्वान                          विदुषी 

3.   नेता                             नेत्री 

4.   महान                           महती 

5.   साधु                             साध्वी 

(  ऊपर दिए गए  शब्दों का सही प्रयोग करने पर ही शुद्ध वाक्य बनता है !  )

जैसे :-   1-  वह एक विद्वान लेखिका है -   (  अशुद्ध वाक्य  )
                 
                 वह एक विदुषी लेखिका है -   (   शुद्ध वाक्य    )

वाच्य :-

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वाच्य :-


क्रिया के जिस रूपांतर से यह बोध हो कि क्रिया द्वारा किए गए विधान का केंद्र बिंदु कर्ता है ,

कर्म अथवा क्रिया -भाव , उसे वाच्य कहते हैं !

वाच्य के तीन भेद हैं - 

1- कर्तृवाच्य -  जिसमें कर्ता प्रधान हो उसे कर्तृवाच्य कहते हैं !

    कर्तृवाच्य में क्रिया के लिंग , वचन आदि कर्ता के समान होते हैं , जैसे - सीता गाना गाती है , 
     इस वाच्य में सकर्मक और अकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है !
     कभी -कभी कर्ता के साथ  ' ने '  चिन्ह नहीं लगाया जाता !

2-  कर्मवाच्य -  जिस वाक्य में कर्म प्रधान होता है , उसे कर्मवाच्य कहते हैं !

    कर्मवाच्य में क्रिया के लिंग , वचन आदि कर्म के अनुसार होते हैं , जैसे - रमेश से पुस्तक 
    लिखी जाती है ! इसमें केवल  ' सकर्मक ' क्रियाओं का प्रयोग होता है !

3-  भाववाच्य -  जिस वाक्य में भाव प्रधान होता है , उसे भाववाच्य कहते हैं !

     भाववाच्य में क्रिया की प्रधानता रहती है , इसमें क्रिया सदा एक वचन , पुल्लिंग और 
     अन्य पुरुष में आती है ! इसका प्रयोग प्राय: निषेधार्थ में होता है , 
     जैसे - चला नहीं जाता , पीया नहीं जाता !

-  कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाना :-


          ( कर्तृवाच्य )                             ( कर्मवाच्य )

1-   रीमा चित्र बनाती है !               -  रीमा द्वारा चित्र बनाया जाता है !

2-   मैंने पत्र लिखा !                     -  मुझसे पत्र लिखा गया !


-  कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाना :-

          ( कर्तृवाच्य )                             ( भाववाच्य )

1-   मैं नहीं पढ़ता !                      -   मुझसे पढ़ा नहीं जाता !

2-   राम नहीं रोता है !                  -   राम से रोया नहीं जाता !

विराम चिन्ह

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विराम चिन्ह 


भाषा में स्थान -विशेष पर रुकने अथवा उतार -चढ़ाव आदि दिखाने के लिए जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है उन्हें ही  ' विराम चिन्ह ' कहते है !
                   
               
1. पूर्ण विराम :-  ( )
                             
 - प्रत्येक वाक्य की समाप्ति पर इस चिन्ह का प्रयोग किया जाता है !

2. उपविराम :-   ( : )

 - उपविराम का प्रयोग संवाद -लेखन एकांकी लेखन या नाटक लेखन में वक्ता के नाम 
   के बाद किया जाता है !   

3. अर्ध विराम :-  ( ; )

  - इसमें उपविराम से भी कम ठहराव होता है ! यदि खंडवाक्य का आरंभ वरन, पर , परन्तु ,
    किन्तु , क्योंकि इसलिए , तो भी आदि शब्दों से हो तो उसके पहले इसका प्रयोग करना 
    चाहिए ! 

4. अल्प विराम :-  ( , )

  - इसमें बहुत कम ठहराव होता है !

5. प्रश्नबोधक :-  ( ? )    

6. विस्मयादिबोधक :-  ( ! )

 - विस्मय , हर्ष , शोक , घृणा , प्रेम आदि भावों को प्रकट करने वाले शब्दों के आगे इसका 
   प्रयोग होता है !

7. निर्देशक चिन्ह :-   ( _ )

8. योजक चिन्ह :-     ( - )

 - द्वन्द्व समास के दो पदों के बीच , सहचर शब्दों के बीच प्रयोग !

9. कोष्ठक चिन्ह :-   ( )

10. उदधरण चिन्ह :-  (  " "  )

11. लाघव चिन्ह :-  ( o )

12. विवरण चिन्ह :-  (  :- )

Sandhi (Seam)

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Sandhi (Seam) संधि


संधि :-

दो पदों में संयोजन होने पर जब दो वर्ण पास -पास आते हैं , तब उनमें जो विकार सहित 
मेल होता है , उसे संधि कहते हैं !

संधि तीन प्रकार की होती हैं :-

1. स्वर संधि -  दो स्वरों के पास -पास आने पर उनमें जो रूपान्तरण होता है , उसे स्वर 
                   कहते है !  स्वर संधि के पांच भेद हैं :-

1. दीर्घ स्वर संधि 

2. गुण स्वर संधि 

3. यण स्वर संधि 

4. वृद्धि स्वर संधि 

5. अयादि स्वर संधि 

1-  दीर्घ स्वर संधि-    जब दो सवर्णी स्वर पास -पास आते हैं , तो मिलकर दीर्घ हो जाते हैं !
     जैसे -

1. अ+अ = आ          भाव +अर्थ = भावार्थ 

2. इ +ई =  ई           गिरि +ईश  = गिरीश 

3. उ +उ = ऊ           अनु +उदित = अनूदित 

4. ऊ +उ  =ऊ          वधू +उत्सव =वधूत्सव 

5. आ +आ =आ        विद्या +आलय = विधालय   

2-   गुण संधि :-  अ तथा आ के बाद इ , ई , उ , ऊ तथा ऋ आने पर क्रमश: ए , ओ तथा 
      अनतस्थ  र होता है इस विकार को गुण संधि कहते है !
      जैसे :-

1. अ +इ =ए           देव +इन्द्र = देवेन्द्र 

2. अ +ऊ =ओ         जल +ऊर्मि = जलोर्मि 

3. अ +ई =ए            नर +ईश = नरेश 

4. आ +इ =ए           महा +इन्द्र = महेन्द्र 

5. आ +उ =ओ          नयन +उत्सव = नयनोत्सव 

3- यण स्वर संधि :-   यदि इ , ई , उ , ऊ ,और ऋ के बाद कोई भिन्न स्वर आए तो इनका 
    परिवर्तन क्रमश:  य , व् और  र में हो जाता है ! जैसे -  

1. इ का य = इति +आदि = इत्यादि 

2. ई का य = देवी +आवाहन = देव्यावाहन 

3. उ का व = सु +आगत = स्वागत 

4. ऊ का व = वधू +आगमन = वध्वागमन 

5. ऋ का र = पितृ +आदेश = पित्रादेश 

3-  वृद्धि स्वर संधि :-  यदि  अ  अथवा  आ के बाद ए अथवा ऐ हो तो दोनों को मिलाकर 
     ऐ और यदि ओ  अथवा औ हो तो दोनों को मिलाकर औ हो जाता है ! जैसे  - 

1. अ +ए =ऐ        एक +एक =  एकैक 

2. अ +ऐ =ऐ        मत +ऐक्य = मतैक्य 

3. अ +औ=औ      परम +औषध = परमौषध 

4. आ +औ =औ    महा +औषध = महौषध 

5. आ +ओ =औ     महा +ओघ = महौघ 

5- अयादि स्वर संधि :-  यदि ए , ऐ और ओ , औ के पशचात इन्हें छोड़कर कोई अन्य स्वर 
    हो तो इनका परिवर्तन क्रमश: अय , आय , अव , आव में हो जाता है जैसे - 

1. ए का अय          ने +अन = नयन 

2. ऐ का आय         नै +अक = नायक 

3. ओ का अव         पो +अन = पवन 

4. औ का आव        पौ +अन = पावन 

5. का परिवर्तन में =   श्रो +अन = श्रवण 

2- व्यंजन संधि :-  व्यंजन के साथ स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उस व्यंजन में जो 
    रुपान्तरण होता है , उसे व्यंजन संधि कहते हैं जैसे :- 

1. प्रति +छवि = प्रतिच्छवि 

2. दिक् +अन्त = दिगन्त 

3. दिक् +गज = दिग्गज 

4. अनु +छेद =अनुच्छेद 

5. अच +अन्त = अजन्त  

3- विसर्ग संधि : -  विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन का मेल होने पर जो विकार होता है ,                          
    उसे विसर्ग संधि कहते हैं ! जैसे -

1. मन: +रथ = मनोरथ 

2. यश: +अभिलाषा = यशोभिलाषा 

3. अध: +गति = अधोगति 

4. नि: +छल  = निश्छल 

5. दु: +गम = दुर्गम

Hindi Samas - Preparation for Central Teacher Eligibility Test Exam

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Hindi Samas - Preparation for Central Teacher Eligibility Test Exam

समास -


दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से नए शब्द बनाने की क्रिया को समास कहते हैं !
सामासिक पद को विखण्डित करने की क्रिया को विग्रह कहते हैं !

समास के छ: भेद हैं -

1- अव्ययीभाव समास - जिस समास में पहला पद प्रधान होता है तथा समस्त पद अव्यय का 
     काम करता है , उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं !जैसे - 

      ( सामासिक पद )                     ( विग्रह )

1.      यथावधि                          अवधि के अनुसार    

2.      आजन्म                           जन्म पर्यन्त 

3.      प्रतिदिन                           दिन -दिन 

4.      यथाक्रम                           क्रम के अनुसार 

5.      भरपेट                              पेट भरकर 


2- तत्पुरुष समास -  इस समास में दूसरा पद प्रधान होता है तथा विभक्ति चिन्हों का लोप 
     हो जाता है !  तत्पुरुष समास के छ: उपभेद विभक्तियों के आधार पर किए गए हैं -

1. कर्म तत्पुरुष 

2. करण तत्पुरुष

3. सम्प्रदान तत्पुरुष 

4. अपादान तत्पुरुष 

5. सम्बन्ध तत्पुरुष 

6. अधिकरण तत्पुरुष 

- उदाहरण इस प्रकार हैं - 

        ( सामासिक पद )                   ( विग्रह )                           ( समास )

1.       कोशकार                          कोश को करने वाला               कर्म तत्पुरुष 

2.       मदमाता                          मद से माता                         करण तत्पुरुष 

3.       मार्गव्यय                         मार्ग के लिए व्यय                 सम्प्रदान तत्पुरुष 

4.       भयभीत                           भय से भीत                         अपादान तत्पुरुष 

5.       दीनानाथ                          दीनों के नाथ                        सम्बन्ध तत्पुरुष 

6.       आपबीती                          अपने पर बीती                      अधिकरण तत्पुरुष                           




3- कर्मधारय समास -  जिस समास के दोनों पदों में विशेष्य - विशेषण या उपमेय - उपमान     सम्बन्ध हो तथा दोनों पदों में एक ही कारक की विभक्ति आये उसे कर्मधारय समास
    कहते हैं !  जैसे :-
       ( सामासिक पद )                 ( विग्रह )
1.      नीलकमल                     नीला है जो कमल
2.      पीताम्बर                       पीत है जो अम्बर
3.      भलामानस                    भला है जो मानस
4.      गुरुदेव                           गुरु रूपी देव
5.      लौहपुरुष                       लौह के समान ( कठोर एवं शक्तिशाली  ) पुरुष

4-  बहुब्रीहि समास -  अन्य पद प्रधान समास को बहुब्रीहि समास कहते हैं !इसमें दोनों पद
     किसी अन्य अर्थ को व्यक्त करते हैं और वे किसी अन्य संज्ञा के विशेषण की भांति कार्य
     करते हैं ! जैसे -
       ( सामासिक पद )               ( विग्रह )
1.      दशानन                        दश हैं आनन जिसके  ( रावण )
2.      पंचानन                        पांच हैं मुख जिनके    ( शंकर जी )
3.      गिरिधर                        गिरि को धारण करने वाले   ( श्री कृष्ण )
4.      चतुर्भुज                        चार हैं भुजायें जिनके  ( विष्णु )
5.      गजानन                       गज के समान मुख वाले  ( गणेश जी )

5-  द्विगु समास -  इस समास का पहला पद संख्यावाचक होता है और सम्पूर्ण पद समूह
     का बोध कराता है ! जैसे -      
         ( सामासिक पद )                  ( विग्रह )
1.        पंचवटी                           पांच वट वृक्षों का समूह
2.        चौराहा                            चार रास्तों का समाहार
3.        दुसूती                             दो सूतों का समूह
4.        पंचतत्व                          पांच तत्वों का समूह
5.        त्रिवेणी                            तीन नदियों  ( गंगा , यमुना , सरस्वती  ) का समाहार

6-  द्वन्द्व समास -  इस समास में दो पद होते हैं तथा दोनों पदों की प्रधानता होती है ! इनका
     विग्रह करने के लिए  ( और , एवं , तथा , या , अथवा ) शब्दों का प्रयोग किया जाता है !
     जैसे -
          ( सामासिक पद )                      ( विग्रह )
1.         हानि - लाभ                        हानि या लाभ
2.         नर - नारी                           नर और नारी
3.         लेन - देन                           लेना और देना
4.         भला - बुरा                          भला या बुरा
5.         हरिशंकर                             विष्णु और शंकर 


समास (Hindi Samas) Prepapration for Teacher Eligibility Test

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 समास (Hindi Samas) Prepapration for Teacher Eligibility Test

परिवर्णी अंग्रेजी के ृ।बतवदलउश् का हिन्दी रूप है जो ग्रीक शब्दों ।ातवदए व्दवउं से बना है। ।ातवद का अर्थ है सबसे पहले का नाम, किनारा अथवा बाहरी भाग और व्दवउं का अर्थ हैµनाम। इस प्रकार ृ।बतवदलउश् का अर्थ हुआµवह नाम जो 'सबसे पहले के अथवा 'बाहरी या 'किनारे के अक्षरों से बना है। संक्षिपित की तरह परिवर्णी भी शब्द समूहों के प्रथम वर्ण या अक्षर को जोड़कर बनार्इ जाती है किन्तु उसका अर्थ रूढ़ हो जाता है। परिवर्णी बनाते समय मुख्यत: सुविधा को ध्यान में रखा जाता है। इसीलिए आरंभिक वर्ण, या अंतिम वर्ण को जोड़ा या छोड़ा जा सकता है। इसमें बिन्दी नहीं लगार्इ जाती है। शब्दों का क्रम भी अनिवार्य नहीं।
संक्षिपित की तरह परिवर्णी शब्द भी दो प्रकार के हैंµहिन्दी शब्दों से निर्मित तथा अंग्रेजी शब्दों से निर्मित। हिन्दी के शब्द-समूहों की परिवर्णी कम प्राप्त होती है। अधिकांश परिवर्णी हिन्दी-अंग्रेजी के मिश्रित शब्द-समूह से निर्मित मिलती है। नीचे कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैंµ
परिवर्णियाँ पूर्ण रूप
विहिप विश्व हिन्दी परिषद
डूसू क्न्ैन् क्मसीप न्दपअमतेपजल ैजनकमदजश्े न्दपवद
हुडको भ्न्क्ब्प्व् भ्वनेपदह ंदक न्तइंद क्मअमसवचउमदज ब्वतचवतंजपवद
यूनिसेफ न्छप्ब्म्थ् न्दपजमक छंजपवदे प्दजमतदंजपवदंस ब्ीपसकतमद म्उमतहमदबल थ्नदकण्
ग) संप्रदान तत्पुरूष - राह खर्च (राह के लिए खर्च)
हवनसामग्री (हवन के लिए सामग्री)
(घ) अपादान तत्पुरूष µ बंधन मुक्त (बंधन से मुक्त)
ऋणमुक्त (ऋण से मुक्त)
(³) संबंध तत्पुरूष - सुखसागर (सुख का सागर)
विचाराधीन (विचार के आधीन)
लखपति (लाखों का पति)
(च) अधिकरण तत्पुरूष - कविशिरोमणि (कवियों में शिरोमणि)
गृहप्रवेश (गृह में प्रवेश)
इनके अतिरिक्त तत्पुरूष समास के दो अन्य भेद हैंµन×ा और अलुक
(ज) न×ा तत्पुरूष-में 'न का किसी अन्य शब्द से समास होता है। इसके पूर्वखंड में निषेधार्थक (अ, अन) उपसर्ग का प्रयोग होता है। जैसेµ
अयोग्य ¾ न योग्य
नापसंद ¾ न पसंद
अपूर्ण ¾ न पूर्ण
अनपढ़ ¾ न पढ़ा हुआ
असत्य ¾ न सत्य
(ज) अलुक तत्पुरूष-जब किसी सामाजिक शब्द के पहले पद की संस्Ñत विभकित का लोप नहीं होता तो उसे अलुक तत्पुरूष कहते हैं। जैसेµ
मनसिज ¾ मनसि ़ ज
सरसिज ¾ सरसि ़ ज
वाचस्पति ¾ वाच: ़ पति
हिंदी में तत्पुरूष समास से बने कुछ सामाजिक शब्दों में शब्द-क्रम बदल देने से अर्थ में परिवर्तन आ जाता है। जैसे-
बहुब्रीहि समास ;।जजतपइनजपअम ब्वउचवनदकद्ध - इसमें कोर्इ पद प्रधान नहीं होता बलिक कोर्इ अन्य ही पद प्रधान होता है। दोनों पद मिलकर किसी अन्य अर्थ (व्यकित) का बोध कराते हैं। प्राय: ये सामाजिक पद विशेषण होते हैं और विग्रह करने के लिए 'जिसका या 'वाला शब्द का प्रयोग होता है। जैसे-
बहुब्रीहि ¾ बहुत हैं धान जिसके (संपन्न व्यकित)
चक्रपाणि ¾ चक्र है पाणि में जिसके (विष्णु)
चतुरानन ¾ चार हैं मुख जिसके (ब्रह्राा)
कर्मधारय समास ;।चचवेपजपवदंस ब्वउचवनदकद्ध µ इस समास के पदों में उपमेय-उपमान अथवा विशेष्य-विशेषण का संबंध होता है तथा विग्रह करने पर दोनों खंडों में कत्र्ता कारक की ही विभाकित रहती है। जैसेµ
सज्जन ¾ सत है जो जन (विशेषण़विशेष्य)
चंद्रमुख ¾ चंद्र के समान मुख (उपमाऩउपमेय)
द्विगु समास ;छनउमतंस ब्वउचवनदकद्ध µ जिस समास में पहला पद संख्यावाचक हो और दूसरा पद मुख्य हो, उसे द्विगु समास कहते हैं। जैसे-        शताब्दी ¾ सौ अब्दों (वषो±) का समूह
त्रिलोकी ¾ तीन लोकों का समूह
अठन्नी ¾ आठ आनों का समूह
त्रिफला ¾ तीन फलों का समूह
द्वन्द्व समास ;ब्वउचनसंजपअम ब्वउचवनदकद्ध - जहाँ दोनों पर प्रधान हों और विग्रह करने पर स्वतंत्रा शब्दों के बीच 'और, 'तथा, 'या संयोजक का प्रयोग किया जाए, वहां द्वन्द्व समास होता है। जैसे-
माता-पिता ¾ माता और पिता
दाल-रोटी ¾ दाल और रोटी
सुख-दुख ¾ सुख और दुख
भला-बुरा ¾ भला और बुरा
छोटा-बड़ा ¾ छोटा या बड़ा
सामासिक शब्दों के रचना प्रकार
हिंदी में सामासिक शब्दों की रचना तीन प्रकार से होती हैµ
तत्सम ़ तत्सम शब्द
(क) गुण़हीन ¾ गुणहीन
(ख) जल़वायु ¾ जलवायु
तदभव ़ तदभव शब्द
(क) बैल़गाड़ी ¾ बैलगाड़ी
(ख) खêा़मीठा ¾ खêामीठा
आगत ़ आगत शब्द
(क) आराम़गाह ¾ आरामगाह
(ख) बिल़बुक ¾ बिलबुक
उपरोक्त समान òोत से निर्मित होने वाले सामासिक शब्दों को समòोतीय कहा जाता है। दूसरी ओर दो भिन्न-भिन्न òोतों से निर्मित समास को विषमòोतीय कहा जाता है, जैसे-
(क) माध्यमिक (तत्सम) ़ बोर्ड (विदेशी) ¾ माध्यमिक बोर्ड
(ख) माँग (विदेशी) ़ पत्रा (तत्सम) ¾ माँगपत्रा
(ग) भाड़ा (तदभव) ़ क्रय (तत्सम) ¾ भाड़ाक्रम              



CTET 2011 SOLVED QUESTION PAPER

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CHILD DEVELOPMENT AND PEDAGOGY