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हवनसामग्री (हवन के लिए सामग्री)
(घ) अपादान तत्पुरूष µ बंधन मुक्त (बंधन से मुक्त)
ऋणमुक्त (ऋण से मुक्त)
(³) संबंध तत्पुरूष - सुखसागर (सुख का सागर)
विचाराधीन (विचार के आधीन)
लखपति (लाखों का पति)
(च) अधिकरण तत्पुरूष - कविशिरोमणि (कवियों में शिरोमणि)
गृहप्रवेश (गृह में प्रवेश)
इनके अतिरिक्त तत्पुरूष समास के दो अन्य भेद हैंµन×ा और अलुक
(ज) न×ा तत्पुरूष-में 'न का किसी अन्य शब्द से समास होता है। इसके पूर्वखंड में निषेधार्थक (अ, अन) उपसर्ग का प्रयोग होता है। जैसेµ
अयोग्य ¾ न योग्य
नापसंद ¾ न पसंद
अपूर्ण ¾ न पूर्ण
अनपढ़ ¾ न पढ़ा हुआ
असत्य ¾ न सत्य
(ज) अलुक तत्पुरूष-जब किसी सामाजिक शब्द के पहले पद की संस्Ñत विभकित का लोप नहीं होता तो उसे अलुक तत्पुरूष कहते हैं। जैसेµ
मनसिज ¾ मनसि ़ ज
सरसिज ¾ सरसि ़ ज
वाचस्पति ¾ वाच: ़ पति
हिंदी में तत्पुरूष समास से बने कुछ सामाजिक शब्दों में शब्द-क्रम बदल देने से अर्थ में परिवर्तन आ जाता है। जैसे-
बहुब्रीहि समास ;।जजतपइनजपअम ब्वउचवनदकद्ध - इसमें कोर्इ पद प्रधान नहीं होता बलिक कोर्इ अन्य ही पद प्रधान होता है। दोनों पद मिलकर किसी अन्य अर्थ (व्यकित) का बोध कराते हैं। प्राय: ये सामाजिक पद विशेषण होते हैं और विग्रह करने के लिए 'जिसका या 'वाला शब्द का प्रयोग होता है। जैसे-
बहुब्रीहि ¾ बहुत हैं धान जिसके (संपन्न व्यकित)
चक्रपाणि ¾ चक्र है पाणि में जिसके (विष्णु)
चतुरानन ¾ चार हैं मुख जिसके (ब्रह्राा)
कर्मधारय समास ;।चचवेपजपवदंस ब्वउचवनदकद्ध µ इस समास के पदों में उपमेय-उपमान अथवा विशेष्य-विशेषण का संबंध होता है तथा विग्रह करने पर दोनों खंडों में कत्र्ता कारक की ही विभाकित रहती है। जैसेµ
सज्जन ¾ सत है जो जन (विशेषण़विशेष्य)
चंद्रमुख ¾ चंद्र के समान मुख (उपमाऩउपमेय)
द्विगु समास ;छनउमतंस ब्वउचवनदकद्ध µ जिस समास में पहला पद संख्यावाचक हो और दूसरा पद मुख्य हो, उसे द्विगु समास कहते हैं। जैसे- शताब्दी ¾ सौ अब्दों (वषो±) का समूह
त्रिलोकी ¾ तीन लोकों का समूह
अठन्नी ¾ आठ आनों का समूह
त्रिफला ¾ तीन फलों का समूह
द्वन्द्व समास ;ब्वउचनसंजपअम ब्वउचवनदकद्ध - जहाँ दोनों पर प्रधान हों और विग्रह करने पर स्वतंत्रा शब्दों के बीच 'और, 'तथा, 'या संयोजक का प्रयोग किया जाए, वहां द्वन्द्व समास होता है। जैसे-
माता-पिता ¾ माता और पिता
दाल-रोटी ¾ दाल और रोटी
सुख-दुख ¾ सुख और दुख
भला-बुरा ¾ भला और बुरा
छोटा-बड़ा ¾ छोटा या बड़ा
सामासिक शब्दों के रचना प्रकार
हिंदी में सामासिक शब्दों की रचना तीन प्रकार से होती हैµ
तत्सम ़ तत्सम शब्द
(क) गुण़हीन ¾ गुणहीन
(ख) जल़वायु ¾ जलवायु
तदभव ़ तदभव शब्द
(क) बैल़गाड़ी ¾ बैलगाड़ी
(ख) खêा़मीठा ¾ खêामीठा
आगत ़ आगत शब्द
(क) आराम़गाह ¾ आरामगाह
(ख) बिल़बुक ¾ बिलबुक
उपरोक्त समान òोत से निर्मित होने वाले सामासिक शब्दों को समòोतीय कहा जाता है। दूसरी ओर दो भिन्न-भिन्न òोतों से निर्मित समास को विषमòोतीय कहा जाता है, जैसे-
(क) माध्यमिक (तत्सम) ़ बोर्ड (विदेशी) ¾ माध्यमिक बोर्ड
(ख) माँग (विदेशी) ़ पत्रा (तत्सम) ¾ माँगपत्रा
(ग) भाड़ा (तदभव) ़ क्रय (तत्सम) ¾ भाड़ाक्रम
समास (Hindi Samas) Prepapration for Teacher Eligibility Test
परिवर्णी
अंग्रेजी के ृ।बतवदलउश् का हिन्दी रूप है जो ग्रीक शब्दों ।ातवदए व्दवउं
से बना है। ।ातवद का अर्थ है सबसे पहले का नाम, किनारा अथवा बाहरी भाग और
व्दवउं का अर्थ हैµनाम। इस प्रकार ृ।बतवदलउश् का अर्थ हुआµवह नाम जो 'सबसे
पहले के अथवा 'बाहरी या 'किनारे के अक्षरों से बना है। संक्षिपित की तरह
परिवर्णी भी शब्द समूहों के प्रथम वर्ण या अक्षर को जोड़कर बनार्इ जाती है
किन्तु उसका अर्थ रूढ़ हो जाता है। परिवर्णी बनाते समय मुख्यत: सुविधा को
ध्यान में रखा जाता है। इसीलिए आरंभिक वर्ण, या अंतिम वर्ण को जोड़ा या
छोड़ा जा सकता है। इसमें बिन्दी नहीं लगार्इ जाती है। शब्दों का क्रम भी
अनिवार्य नहीं।
संक्षिपित
की तरह परिवर्णी शब्द भी दो प्रकार के हैंµहिन्दी शब्दों से निर्मित तथा
अंग्रेजी शब्दों से निर्मित। हिन्दी के शब्द-समूहों की परिवर्णी कम प्राप्त
होती है। अधिकांश परिवर्णी हिन्दी-अंग्रेजी के मिश्रित शब्द-समूह से
निर्मित मिलती है। नीचे कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैंµ
परिवर्णियाँ पूर्ण रूप
विहिप विश्व हिन्दी परिषद
डूसू क्न्ैन् क्मसीप न्दपअमतेपजल ैजनकमदजश्े न्दपवद
हुडको भ्न्क्ब्प्व् भ्वनेपदह ंदक न्तइंद क्मअमसवचउमदज ब्वतचवतंजपवद
यूनिसेफ न्छप्ब्म्थ् न्दपजमक छंजपवदे प्दजमतदंजपवदंस ब्ीपसकतमद म्उमतहमदबल थ्नदकण्
ग) संप्रदान तत्पुरूष - राह खर्च (राह के लिए खर्च)हवनसामग्री (हवन के लिए सामग्री)
(घ) अपादान तत्पुरूष µ बंधन मुक्त (बंधन से मुक्त)
ऋणमुक्त (ऋण से मुक्त)
(³) संबंध तत्पुरूष - सुखसागर (सुख का सागर)
विचाराधीन (विचार के आधीन)
लखपति (लाखों का पति)
(च) अधिकरण तत्पुरूष - कविशिरोमणि (कवियों में शिरोमणि)
गृहप्रवेश (गृह में प्रवेश)
इनके अतिरिक्त तत्पुरूष समास के दो अन्य भेद हैंµन×ा और अलुक
(ज) न×ा तत्पुरूष-में 'न का किसी अन्य शब्द से समास होता है। इसके पूर्वखंड में निषेधार्थक (अ, अन) उपसर्ग का प्रयोग होता है। जैसेµ
अयोग्य ¾ न योग्य
नापसंद ¾ न पसंद
अपूर्ण ¾ न पूर्ण
अनपढ़ ¾ न पढ़ा हुआ
असत्य ¾ न सत्य
(ज) अलुक तत्पुरूष-जब किसी सामाजिक शब्द के पहले पद की संस्Ñत विभकित का लोप नहीं होता तो उसे अलुक तत्पुरूष कहते हैं। जैसेµ
मनसिज ¾ मनसि ़ ज
सरसिज ¾ सरसि ़ ज
वाचस्पति ¾ वाच: ़ पति
हिंदी में तत्पुरूष समास से बने कुछ सामाजिक शब्दों में शब्द-क्रम बदल देने से अर्थ में परिवर्तन आ जाता है। जैसे-
बहुब्रीहि समास ;।जजतपइनजपअम ब्वउचवनदकद्ध - इसमें कोर्इ पद प्रधान नहीं होता बलिक कोर्इ अन्य ही पद प्रधान होता है। दोनों पद मिलकर किसी अन्य अर्थ (व्यकित) का बोध कराते हैं। प्राय: ये सामाजिक पद विशेषण होते हैं और विग्रह करने के लिए 'जिसका या 'वाला शब्द का प्रयोग होता है। जैसे-
बहुब्रीहि ¾ बहुत हैं धान जिसके (संपन्न व्यकित)
चक्रपाणि ¾ चक्र है पाणि में जिसके (विष्णु)
चतुरानन ¾ चार हैं मुख जिसके (ब्रह्राा)
कर्मधारय समास ;।चचवेपजपवदंस ब्वउचवनदकद्ध µ इस समास के पदों में उपमेय-उपमान अथवा विशेष्य-विशेषण का संबंध होता है तथा विग्रह करने पर दोनों खंडों में कत्र्ता कारक की ही विभाकित रहती है। जैसेµ
सज्जन ¾ सत है जो जन (विशेषण़विशेष्य)
चंद्रमुख ¾ चंद्र के समान मुख (उपमाऩउपमेय)
द्विगु समास ;छनउमतंस ब्वउचवनदकद्ध µ जिस समास में पहला पद संख्यावाचक हो और दूसरा पद मुख्य हो, उसे द्विगु समास कहते हैं। जैसे- शताब्दी ¾ सौ अब्दों (वषो±) का समूह
त्रिलोकी ¾ तीन लोकों का समूह
अठन्नी ¾ आठ आनों का समूह
त्रिफला ¾ तीन फलों का समूह
द्वन्द्व समास ;ब्वउचनसंजपअम ब्वउचवनदकद्ध - जहाँ दोनों पर प्रधान हों और विग्रह करने पर स्वतंत्रा शब्दों के बीच 'और, 'तथा, 'या संयोजक का प्रयोग किया जाए, वहां द्वन्द्व समास होता है। जैसे-
माता-पिता ¾ माता और पिता
दाल-रोटी ¾ दाल और रोटी
सुख-दुख ¾ सुख और दुख
भला-बुरा ¾ भला और बुरा
छोटा-बड़ा ¾ छोटा या बड़ा
सामासिक शब्दों के रचना प्रकार
हिंदी में सामासिक शब्दों की रचना तीन प्रकार से होती हैµ
तत्सम ़ तत्सम शब्द
(क) गुण़हीन ¾ गुणहीन
(ख) जल़वायु ¾ जलवायु
तदभव ़ तदभव शब्द
(क) बैल़गाड़ी ¾ बैलगाड़ी
(ख) खêा़मीठा ¾ खêामीठा
आगत ़ आगत शब्द
(क) आराम़गाह ¾ आरामगाह
(ख) बिल़बुक ¾ बिलबुक
उपरोक्त समान òोत से निर्मित होने वाले सामासिक शब्दों को समòोतीय कहा जाता है। दूसरी ओर दो भिन्न-भिन्न òोतों से निर्मित समास को विषमòोतीय कहा जाता है, जैसे-
(क) माध्यमिक (तत्सम) ़ बोर्ड (विदेशी) ¾ माध्यमिक बोर्ड
(ख) माँग (विदेशी) ़ पत्रा (तत्सम) ¾ माँगपत्रा
(ग) भाड़ा (तदभव) ़ क्रय (तत्सम) ¾ भाड़ाक्रम
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