Sunday, September 7, 2014

वाच्य :-

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वाच्य :-


क्रिया के जिस रूपांतर से यह बोध हो कि क्रिया द्वारा किए गए विधान का केंद्र बिंदु कर्ता है ,

कर्म अथवा क्रिया -भाव , उसे वाच्य कहते हैं !

वाच्य के तीन भेद हैं - 

1- कर्तृवाच्य -  जिसमें कर्ता प्रधान हो उसे कर्तृवाच्य कहते हैं !

    कर्तृवाच्य में क्रिया के लिंग , वचन आदि कर्ता के समान होते हैं , जैसे - सीता गाना गाती है , 
     इस वाच्य में सकर्मक और अकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है !
     कभी -कभी कर्ता के साथ  ' ने '  चिन्ह नहीं लगाया जाता !

2-  कर्मवाच्य -  जिस वाक्य में कर्म प्रधान होता है , उसे कर्मवाच्य कहते हैं !

    कर्मवाच्य में क्रिया के लिंग , वचन आदि कर्म के अनुसार होते हैं , जैसे - रमेश से पुस्तक 
    लिखी जाती है ! इसमें केवल  ' सकर्मक ' क्रियाओं का प्रयोग होता है !

3-  भाववाच्य -  जिस वाक्य में भाव प्रधान होता है , उसे भाववाच्य कहते हैं !

     भाववाच्य में क्रिया की प्रधानता रहती है , इसमें क्रिया सदा एक वचन , पुल्लिंग और 
     अन्य पुरुष में आती है ! इसका प्रयोग प्राय: निषेधार्थ में होता है , 
     जैसे - चला नहीं जाता , पीया नहीं जाता !

-  कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाना :-


          ( कर्तृवाच्य )                             ( कर्मवाच्य )

1-   रीमा चित्र बनाती है !               -  रीमा द्वारा चित्र बनाया जाता है !

2-   मैंने पत्र लिखा !                     -  मुझसे पत्र लिखा गया !


-  कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाना :-

          ( कर्तृवाच्य )                             ( भाववाच्य )

1-   मैं नहीं पढ़ता !                      -   मुझसे पढ़ा नहीं जाता !

2-   राम नहीं रोता है !                  -   राम से रोया नहीं जाता !

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