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वाच्य :-
क्रिया के जिस रूपांतर से यह बोध हो कि क्रिया द्वारा किए गए विधान का केंद्र बिंदु कर्ता है ,
क्रिया के जिस रूपांतर से यह बोध हो कि क्रिया द्वारा किए गए विधान का केंद्र बिंदु कर्ता है ,
कर्म अथवा क्रिया -भाव , उसे वाच्य कहते हैं !
वाच्य के तीन भेद हैं -
1- कर्तृवाच्य - जिसमें कर्ता प्रधान हो उसे कर्तृवाच्य कहते हैं !
कर्तृवाच्य में क्रिया के लिंग , वचन आदि कर्ता के समान होते हैं , जैसे - सीता गाना गाती है ,
इस वाच्य में सकर्मक और अकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है !
कभी -कभी कर्ता के साथ ' ने ' चिन्ह नहीं लगाया जाता !
2- कर्मवाच्य - जिस वाक्य में कर्म प्रधान होता है , उसे कर्मवाच्य कहते हैं !
कर्मवाच्य में क्रिया के लिंग , वचन आदि कर्म के अनुसार होते हैं , जैसे - रमेश से पुस्तक
लिखी जाती है ! इसमें केवल ' सकर्मक ' क्रियाओं का प्रयोग होता है !
3- भाववाच्य - जिस वाक्य में भाव प्रधान होता है , उसे भाववाच्य कहते हैं !
भाववाच्य में क्रिया की प्रधानता रहती है , इसमें क्रिया सदा एक वचन , पुल्लिंग और
अन्य पुरुष में आती है ! इसका प्रयोग प्राय: निषेधार्थ में होता है ,
जैसे - चला नहीं जाता , पीया नहीं जाता !
- कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाना :-
( कर्तृवाच्य ) ( कर्मवाच्य )
1- रीमा चित्र बनाती है ! - रीमा द्वारा चित्र बनाया जाता है !
2- मैंने पत्र लिखा ! - मुझसे पत्र लिखा गया !
- कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाना :-
( कर्तृवाच्य ) ( भाववाच्य )
1- मैं नहीं पढ़ता ! - मुझसे पढ़ा नहीं जाता !
2- राम नहीं रोता है ! - राम से रोया नहीं जाता !
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